तुम्हारा नारीत्व
है स्वयं तुम में
तुम्हारा सौंदर्य है नारी होने में
करुणा अपार, ममता की धार
सब तुममें है समाहित
सब तुम्हारे कार्य हैं
मनुज व प्रकृति हित
तुम्हारा श्रृंगार, हैं तुम्हारे गुण
तुम्हारी, क्षमताओं में हो तुम निपुण
तुम क्यों बनो औरों जैसी
बनी रहो सम्पूर्ण तुम अपने जैसी
तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा वात्सल्य
तुम्हारा समर्पण,
तुम्हारी पूजा और भक्ति
और तुम्हारी ज्योति
है स्वयं देवी व शक्ति
तुम्हारा आसमान है वृहत
तुम हो स्वयं में विशेष
तुम नारी ही रहना
मनुष्य जाति का तुम
बने रहना गहना
तुम सशक्त विचार हो,आदर्श आचार हो,
प्रकृति प्रदत्त, मानवता को उपहार हो,
तुम सम्पूर्ण संस्कार हो
बस
तुम, तुम ही रहना
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र