डॉ दिलीप अग्निहोत्री
लखनऊ के डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में भी उन्होंने अपनी इस भूमिका का बखूबी निर्वाह किया। उन्होंने कहा कि वंचित और अक्षम वर्ग की उपेक्षा नहीं की जा सकती। क्योंकि उनकी उन्नति और उन्हें मुख्य धारा में शामिल किए बिना समग्र विकास की यात्रा पूरी नहीं हो सकती। सभ्यता और राष्ट्र के उत्थान का रास्ता वंचित और उपेक्षित समुदायों के बीच से होकर ही गुजरता है। सिर्फ शिक्षा ही नहीं, जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सबके लिए समान अवसरों की उपलब्धता रहनी चाहिए। दिव्यांग जन को गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा, प्रशिक्षण एवं पुनर्वास के माध्यम से समाज और विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का सराहनीय कार्य चल रहा है।
उन्हें शिक्षण प्रशिक्षण एवं कौशल विकास के अवसर उपलब्ध होने चाहिए। हमारे भीतर उनके प्रति करूणा से ज्यादा कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। राज्यपाल ने दीक्षान्त समारोह के अवसर पर एक हजार एक उपाधि एवं पदक प्राप्त प्रदान किये। इनसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने उत्कृष्ट कार्यों द्वारा राष्ट्र निर्माण एवं मानवता के हित में योगदान देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हम सभी का दायित्व है कि विश्व के मानचित्र पर भारत को एक महत्वपूर्ण, प्रभावशाली एवं श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में स्वयं को तथा अपने संसाधनों को अर्पित करें।
राज्यपाल ने विभिन्न विषयों में सर्वोच्च अंक हासिल करने वाले छात्र छात्राओं को पदक एवं उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया। राज्यपाल ने जगत्गुरू श्री रामभद्राचार्य तथा भगवान महावीर विकलांग सहायता समिमि, जयपुर के संस्थापक पद्म भूषण देवेन्द्र राज मेहता को डी लिट की मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया।
मुख्य अतिथि श्री रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के संस्थापक एवं कुलाधिपति जगद्गुरू श्री रामभद्राचार्य ने आशीर्वचन में कहा कि दिव्यांगता अभिशाप नहीं, प्रसाद है। इससे आन्तरिक शक्ति का पता चलता है। विद्यार्थी शिक्षा की गरिमा को समझें। राष्ट्र को देवता मानते हुए अपने कर्म से भगवान की पूजा करें, यही राष्ट्र प्रेम है। दिव्यांगजन सशक्तीकरण एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि दिव्यांग लोग प्रकृति की विशेष संतान हैं। दिव्यांगों की विशेष स्थिति को देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिव्यांग नाम दिया है।