नवेद शिकोह
लखनऊ, 25 अक्टूबर 2025 (शगुन न्यूज़ इंडिया विशेष): मीडिया की चकाचौंध भरी दुनिया में फोटो जर्नलिस्ट्स वे अनकहे योद्धा हैं जो हर घटना की सच्ची तस्वीर कैद करते हैं, लेकिन उनकी अपनी कहानियां अक्सर सुर्खियों से कोसों दूर रह जाती हैं। लखनऊ जैसे शहर में, जहां हर महीने किसी न किसी पत्रकार या फोटो जर्नलिस्ट की मौत की खबर आती है, हाल ही में दो दिग्गज छायाकारों की विदाई ने पूरे समुदाय को शोक में डुबो दिया। जमीनी स्तर के फोटोग्राफर कुमार पृथ्वी की मौत का दर्द अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि ‘द वीक’ मैगजीन के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट पवन कुमार ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। शगुन न्यूज़ इंडिया, जो हमेशा उन आवाजों को जगह देता है जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नजरअंदाज कर देती है, इन अमर छायाकारों को दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

कुमार पृथ्वी, लखनऊ के उन चुनिंदा फोटोग्राफर्स में से थे जो सड़कों पर दौड़ते हुए शहर की धड़कन को अपने लेंस में उतारते थे। उनकी तस्वीरें न केवल समाचारों का हिस्सा थीं, बल्कि इतिहास का जीवंत दस्तावेज भी। लेकिन दुर्भाग्य से, उनकी जिंदगी भी वैसी ही भागदौड़ भरी रही, जो असमय खत्म हो गई। ठीक एक सप्ताह बाद, पवन कुमार की मौत ने इस दर्द को दोगुना कर दिया। ‘द वीक’ के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट के रूप में पवन अपने एक्सक्लूसिव वर्क के लिए मशहूर थे। उनकी तस्वीरों में लाइट और कम्पोजिशन की वो जादुई विशिष्टता थी जो हर दृश्य को यादगार बना देती थी। चाहे राजनीतिक रैलियां हों या सामाजिक आंदोलन, पवन का कैमरा हमेशा सच्चाई को उजागर करने के लिए तैयार रहता था।
लखनऊ की मीडिया जगत में फोटो जर्नलिस्ट्स की जिंदगी किसी युद्धक्षेत्र से कम नहीं। जाड़े की ठंडी रातों में सर्दी झेलते, गर्मी की झुलसाती धूप में पसीना बहाते, बरसात की आंधी में भीगते हुए ये छायाकार खबरों को कैद करते हैं। पुलिस की लाठियां, दंगाइयों के पत्थर, और कभी-कभी दुर्घटनाओं का सामना ये सब उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। लेकिन बदले में मिलती है क्या? नौकरी की कोई गारंटी नहीं, आर्थिक तंगी, और तकनीकी युग में स्मार्टफोन्स व सोशल मीडिया की चुनौतियां। मुख्यमंत्री की बढ़ती टीम, आम आदमी के हाथों में हाई-रेजोल्यूशन कैमरे ये सब ने प्रेस फोटोग्राफर्स की दुनिया को और कठिन बना दिया है। इलाज के अभाव में या एक्सीडेंट में असमय काल का ग्रास बनना इनकी नियति सी लगने लगी है।
ये कोई नई समस्या नहीं है। लखनऊ के फोटो जर्नलिस्ट समुदाय में ‘अंडर सिक्सटी’ की विदाई आम हो चुकी है। मौत की किताब के पन्ने पलटिए तो नामों की लंबी फेहरिस्त मिलेगी: पारी, विजय पिंटू, मनोज देवगन, संजय त्रिपाठी, जगत, देवा, राजू तिवारी, बी.डी. गर्ग, कृष्ण मोहन मिश्रा… इनमें से नब्बे प्रतिशत ने साठ साल की उम्र से पहले ही दुनिया को अलविदा कह दिया। जैसे अजगर बिना ज्यादा परिश्रम के सौ साल जी लेता है, वैसे ये घोड़े की तरह दौड़ते-दौड़ते दस-बीस सालों में थक जाते हैं। मेहनत और क्रिएटिविटी के बाद भी व्यवसायिक दुनिया में दुश्वारियां उन्हें घेर लेती हैं।
शगुन न्यूज़ इंडिया इस दर्द को महसूस करता है और उन सभी छायाकारों को नमन करता है जिनकी तस्वीरें बिना नाम के इतिहास रचती रहीं। हम वादा करते हैं कि ऐसी कहानियों को हमेशा जगह देंगे, क्योंकि ये न केवल व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि मीडिया की आत्मा पर चोट है। इनकी याद में एक मिनट का मौन रखें और सोचें, क्या समय आ गया है कि हम इन योद्धाओं के लिए कुछ करें? उनके परिवारों के लिए सहायता, बेहतर सुविधाएं, और सम्मान – ये जरूरी है।
श्रद्धांजलि: कुमार पृथ्वी और पवन कुमार, तुम्हारी तस्वीरें अमर रहेंगी। तुम्हारी कमी हमेशा खलेगी, लेकिन तुम्हारी विरासत हमें प्रेरित करती रहेगी। ईश्वर तुम्हें शांति प्रदान करें।(शगुन न्यूज़ इंडिया की तरफ से।







