- कांशीराम पुण्यतिथि रैली का जलवा: लाखों कार्यकर्ताओं ने दिखाई ताकत: 16 अक्टूबर की बैठक में फोकस: 2027 चुनावों के लिए बूथ स्तर की मजबूती
- बसपा की नई रणनीति पर मंथन, आकाश आनंद की अनुपस्थिति ने बढ़ाई अटकलें
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने कांशीराम की 19वीं पुण्यतिथि पर 9 अक्टूबर को लखनऊ में आयोजित महासंकल्प रैली की भव्य सफलता से उत्साहित नजर आ रही हैं। रैली में लाखों कार्यकर्ताओं की भीड़ ने पार्टी को नई ऊर्जा दी है, जिसके बाद गुरुवार को माल एवेन्यू स्थित केंद्रीय कार्यालय में हुई महत्वपूर्ण बैठक ने 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की रणनीति को नया आकार दिया। मायावती ने पदाधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि यह सफलता पार्टी के पुनरुत्थान का संकेत है, लेकिन आकाश आनंद की अनुपस्थिति ने आंतरिक समन्वय पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भाईचारा कमेटियों का नया जन्म: मुस्लिम-दलित गठजोड़ पर दांव
बैठक में यूपी के सभी जिलों से आए वरिष्ठ नेता, जिला अध्यक्ष और समन्वयक शामिल हुए। मायावती ने संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने, भाईचारा कमेटियों के जरिए मुस्लिम, अति पिछड़े, दलित और ब्राह्मण वोटरों को एकजुट करने पर जोर दिया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, रैली की सफलता ने कार्यकर्ताओं में जोश भरा है, और अब मायावती व आकाश आनंद मिलकर प्रदेशव्यापी जनसभाओं का दौर शुरू करेंगे। मायावती ने बयान जारी कर सभी पदाधिकारियों को धन्यवाद दिया, कहा, “लोग अभी भी बसपा के साथ खड़े हैं, लेकिन हमें अभी से कमर कसनी होगी।”

आकाश आनंद बिहार में व्यस्त: यूपी बैठक से दूरी पर सवालों का दौर
हालांकि, बैठक का सबसे बड़ा सवाल आकाश आनंद की गैरमौजूदगी रहा। मायावती के भतीजे और राष्ट्रीय समन्वयक आकाश बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटे हैं, जहां वे कार्यकर्ताओं के साथ रणनीति बना रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स में उनकी बीमारी का जिक्र है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह अनुपस्थिति पार्टी के आंतरिक तालमेल पर सवाल उठाती है। रैली के दौरान मायावती ने आकाश की तारीफ की थी, कहा था, “जैसे आप मेरे साथ खड़े रहे, वैसे ही आकाश के साथ रहें।” लेकिन उनकी दूरी ने कयासबाजी को हवा दी है। क्या यह बिहार फोकस की वजह है या कुछ और?
बसपा की यह बैठक चुनावी रणनीति के लिहाज से अहम मानी जा रही है। पार्टी अब 2007 वाली भाईचारा कमेटियों को अपडेटेड रूप देगी, जिसमें युवा चेहरों को आगे लाया जाएगा। आकाश को युवा आइकन के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा, जबकि मायावती संगठनात्मक मोर्चे पर फोकस करेंगी। पुराने नेताओं को वापस बुलाने की कोशिश भी तेज हो रही है, जिन्होंने माफी मांगी तो सम्मान से जगह मिलेगी।
रैली की सफलता ने बसपा को उम्मीद जगाई है कि दलित वोटबैंक को फिर से एकजुट किया जा सकता है। लेकिन चुनौतियां कम नहीं संगठन की कमजोरी और वोटों का बिखराव पार्टी के लिए खतरा बना हुआ है। क्या यह नई रणनीति बसपा को फिर से सत्ता के करीब ले जाएगी, या आंतरिक मतभेद बाधा बनेंगे? आने वाले महीनों में साफ होगा।







