इधर कुछ सालों में पटाखों के शोरगुल, धमाकों और खतरनाक धुवों से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा है, इसके साथ ही पेड़ पौधों पर रहने वाले पशु- पंछी और जानवरों और हॉस्पिटल में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के स्वास्थ पर कितना घातक असर पहुँचता है इसका शायद ही किसी को अंदाजा हो! हालाँकि बहुत से पर्यावरण प्रेमी ऐसे भी हैं जो इन सब बातों का ध्यान रखते हैं और सादगी से दिवाली मनाते हैं।
दिवाली हर किसी को अच्छी लगती है। दिवाली और पटाखों का ऐसा गहरा संबंध है कि एक के बिना दूसरे की कल्पना करना मुश्किल है। सीधा कारण यह है कि दिवाली लंका में विजयी होने के बाद भगवान राम के लौटने की खुशी मनाने की सूचक है व पटाखे उसका माध्यम, हमारे समाज में कुछ परंपराएं यथावत चली आ रही हैं तो कुछ समय की छाप पड़ने से किसी न किसी कारण बदल भी रही है।
ठीक यही वजह दिवाली में भी है अब से कुछ समय पहले तक पटाखों की धूम कई दिनों पहले से मच जाती थी सब बड़े लोग भी बाल सुलभ कौतूहल के साथ पटाखे दिगाने में शामिल होते थे। तब यह पूरे परिवार द्वारा निभाई जाने वाली एक ऐसी रस्म थी, जो बच्चों का मनोरंजन करती थी और बड़ों के लिए अतुलनीय आवश्यक परंपरा का निर्वाह!
समय बदलने के साथ लोगों की सोच भी बदली और पटाखे छुड़ाने में मुख्य रूप से पटाखे दिगाने के रोमांच ने प्रवेश किया। उसके बाद तो रस्म एवं परंपरा चाहे जो रही हो पटाखे दिगाने का स्वरूप बाजार के साथ बढ़ता गया। बाजार में एक से बढ़कर एक दगने वाले ऐसे सामान आ कर गए, जिन्हें पटाखे नहीं बल्कि विस्फोटक कहना ज्यादा सही होगा। यह एक विशेष मानसिकता के लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय हुए, और अब चलन बन चुके हैं तो अब पटाखे बनाने के और पटाखे छुड़ाने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं में लोगों की जाने जाना और गंभीर रूप से घायल होने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
ऐसे में दिवाली के दौरान केवल 2 घंटे पटाखे छुड़ाने का यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने केवल दो घंटे ही पटाखे जला सकने का आदेश उन लोगों के लिए निश्चित ही राहत बनकर आया है जो पटाखों के नाम पर भयंकर विस्फोटों से दीवाली के दौरान बुरी तरह पीड़ित रहते थे। इनमें सामान्य मनुष्यों के साथ निरीह पशु पंछी व बीमार भी शामिल हैं। जिनमें से कई तो किसी न किसी परिवार के सदस्य की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। हां यह जरूर है कि इस आदेश को सख्ती से लागू कराने में पुलिस की भूमिका निभाए तो बात बन जाये!