जी के चक्रवर्ती
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने 13वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन अवसर पर आतंकवाद पर गहरी चिंता व्यक्त किया है लेकिन अभी भी दुनिया के कुछ देशों का एक गठजोड़ सामने निकल कर नही आया, जो सम्पूर्ण दुनिया के लिये खतरा बने आतंक और आतंकवादियों के खिलाफ लड़ने और उसे खात्मे का संकल्प सके बल्कि अफगानिसरण की सीमाओं से लगने वाले देशों में चीन और पाकिस्तान तो तालिबान पक्ष में शुरू से ही खड़े नजर आ रहे हैं।
वैसे आज अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को अफगानिस्तान में बनी नई सरकार को लेकर चिंता कहाँ तक है यह बात तो उनके निजी स्वार्थ पर निर्भर करती है, लेकिन वास्तविक अंदुरुनी बात को भांप पाना अभी से कठिन जरूर है लेकिन चीन पाकिस्तान जैसे देशो ने तालिबानी सरकार को सामरिक और आर्थिक सहायता देना भी शुरू कर दिया है लेकिन इन देशो से तालिबान सरकार की कब तक पटरी खाएगी यह अभी से कहना मुश्किल है लेकिन एक बातों तो स्पष्ट है कि इन देशों में से विशेष कर चीन का तात्कालिक अंदुरुनी स्वार्थ जैसे ही खत्म होगा वैसे ही यह देश यूटर्न लेने में देर नही लगाएगी।
जहां तक भारत की बात है तो उसकी चिंता हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए मोहम्मद एवं लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी गुटों को लेकर है। वहीं चीन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को लेकर तो दूसरी तरफ रूस इस्लामिक स्टेट-खुरासान और उज्बेकिस्तान के इस्लामी आंदोलन को लेकर चिंतित है। ब्रिक्स देशों के लिए अफगानिस्तान में सत्ता का परिवर्तन होना चिंता का विषय है लेकिन ब्रिक्स देश इस समस्या के लिए जिम्मेदार अमेरिका,रूस और उनके सहयोगियों को मान रहा है। इस बात को लेकर पुतिन ने कहा कि, ‘अफगानिस्तान से अमेरिका और उसके सहयोगीयों की वापसी ने दुनिया के सामने एक नया संकट पैदा कर दिया है और इससे अभी से यह बात कह पाना मुश्किल है कि ऐसी अवस्था में क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा कितने हद तक और कैसे प्रभावित होगा।
मौजूदा समय की तालिबानी सरकार पिछली सरकार जैसी ही होगी अथवा उससे भी बदतर होगी यह बात तो आगे आने वाले दिनों में और भी अधिक स्पष्ट होगा।
अभी कुछ दिनों तक अफगानिस्तान की आंतरिक स्थिति अस्थिर ही रहेगी। पाकिस्तानी सेना और वायुसेना की मदद से तालिबान ने भले ही पंजशीर घाटी में घुसने में सफलता पा लिया हो लेकिन पहाड़ की ऊंचाइयों पर अब भी नॉर्दन एलायंस के सैनिकों का नियंत्रण में है। ताजा समाचारों के अनुसार पाकिस्तानी सेना पर हमला ताजिकिस्तान से किया गया है और यह हमला केवल रूस के मूक समर्थन से ही संभव है। यह स्थिति उस देश में छद्म युद्ध शुरू होने का पहला संकेत जैसा ही है वहीं ईरान ने अफगानिस्तान में केवल चुनी हुई सरकार को मान्यता देने की बात कही है।
यह बात तो निश्चित तौर पर सही है कि अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार अपने आंतरिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से घिरे होने के कारण आतंकवादी समूहों में आपसी कलह और टकराव में वृद्धि होना स्वाभाविक है और जिससे अफगानिस्तान के पड़ोस में स्थित ब्रिक्स देशों में आतंकी गतिविधियां बढ़ने के संभावनाओं में उनकी प्राथमिक चिंताएं बढना स्वाभाविक सी बात हैं। मौजूदा समय की अफगानिस्तान सरकार में पाक समर्थक कट्टरपंथियों और यूएनएससी नामित आतंकवादियों के शामिल होने से दुनिया के देशों का अफगान सरकार के साथ संपर्क बढ़ाना और उसे मान्यता देना मुश्किल हो गया है। यदि दुनिया मौजूदा समय मे पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में थोपी गई कट्टरपंथियों की सरकार की उपेक्षा करेगी, तो इससे अफगान नागरिकों को ही नुकसान होगा।