लखनऊ: सांस लेने में तकलीफ, चलने पर सांस फूलने और खांसी के लक्षण गंभीर फेफड़ों की बीमारी का संकेत देते हैं। यदि समय से मर्ज की पहचान हो जाये तो इलाज में आसानी हो जाती है। केजीएमयू के क्लिीनिकल इम्यूनोलॉजी और रूमेटोलॉजी विभाग के 20वें स्थापना दिवस पर पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. आलोक नाथ यह बातें शनिवार को कहीं। केजीएमयू के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी और रुमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पुनीत कुमार ने कहा कि ने इस बीमारी की पहचान जितनी जल्दी होगी। रोगी को उपचार से उतनी जल्द राहत मिलेगी।
उन्होंने कहा कि बीमारी की पहचान और इलाज के तीन विभाग मिलकर काम करते हैं। इसमें क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी और रूमेटोलॉजी, पल्मोनरी मेडिसिन और रेडियालॉजी के डॉक्टरों की भूमिका होती है।
विभागाध्यक्ष डॉक्टर पुनीत ने बताया कि विभाग में रोजाना गठिया समेत दूसरी बीमारियों के औसतन 250 रोगी आते हैं। आईएलडी की समस्या सिस्टमिक स्केलीरोसिस में करीब 50 फीसदी और रूहमेटाइड अर्थराइटिस्ट के रोगियों में करीब 20 फीसदी होती है। इसकी जांच के लिए पीएफटी, एचआर-सीटी या लंग बायोप्सी करायी जाती है।
केजीएमयू रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ कुमार ने बताया कि सीटीडी- आईएलडी का जल्द पहचान जरूरी है। जांच से ही बीमारी की गंभीरता का पता चलता है। दवाओं का चयन उसी के अनुसार किया जाता है। डॉ. पुनीत कुमार और डॉ. उर्मिला धाकड़ ने विभाग में सराहनीय काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को सम्मानित किया। इस मौके पर केजीएमयू कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने विभाग की उपलब्धियां गिनायी।