डॉ दिलीप अग्निहोत्री


इमरान ने अनुच्छेद अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटाने को भारत की रणनीतिक गलती बताया था। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने यह अंतिम कार्ड खेलकर एक रणनीतिक गलती की है। मोदी और भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। क्योंकि उन्होंने कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि भारत के आंतरिक मामले को इस तरह उठाकर इमरान ने रणनीतिक गलती की है। जिसने पाकिस्तान में उनकी स्थिति कमजोर कर दी है, अब सेना का उनपर दबाब बढ़ेगा। अमेरिका ने उसे मिलने वाली सहायता में कटौती कर दी।
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने परमाणु अस्त्र प्रयोग पर नीति में बदलाव की बात कही है। इमरान से अधिक सही बयान उनके विदेशमंत्री ने दिया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को समर्थन मिलना मुश्किल है। पाकिस्तान अकेला पड़ता जा रहा है। अकेले चीन के समर्थन से कुछ नहीं होगा। कुरैशी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के भी निजी हित भारत से हैं और उन्होंने वहां पर अरबों का निवेश किया हुआ है। ऐसे में वह पाकिस्तान का साथ देंगे यह बेहद मुश्किल है। जाहिर है कि पाकिस्तान अपने ही पैतरों से पस्त हो गया है।


राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान से भारत अनुच्छेद तीन सौ सत्तर और पैंतीस ए के मुद्दे पर कोई बात नहीं करेगा। यदि वार्ता हुई तो केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुद्दे पर होगी। पाकिस्तान से आतंकवाद को खत्म करने के मुद्दे पर भी बात होगी। अनुच्छेद तीन सौ सत्तर पर अमेरिका भी पाकिस्तान को फटकार लगा चुका है। अनुच्छेद तीन सौ सत्तर व पैंतीस ए को समाप्त करने से पहले कुछ लोग कहते थे कि यदि इससे छेड़छाड़ की तो देश बंट जाएगा और दंगे होंगे। भाजपा वोट बैंक की नहीं बल्कि अपना वचन निभाने की राजनीति करती है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद अनुच्छेद तीन सौ सत्तर व पैंतीस ए को खत्म करके अपने वचन को भाजपा ने पूरा किया है। इससे पड़ोसी पूरी तरह बौखलाया हुआ है। वह दुनिया के हर देश का दरवाजा खटखटा रहा है, लेकिन उसे हर जगह दुत्कार मिल रही है। पड़ोसी देश आतंकवाद के जरिये भारत को कमजोर करने की कोशिश करता है, लेकिन देश की सेनाएं आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं।
इमरान ने डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बात की। लेकिन यहां भी निराशा मिली। ट्रम्प ने कश्मीर मसले पर दखल से इंकार कर दिया। कहा कि आप भारत से ही बात करें। जबकि भारत कह चुका है कि आतंकवाद रोकें तब बात होगी। जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा हटाने और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के भारत के फैसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंद कमरे में हुई बैठक से पहले ट्रम्प और इमरान ने फोन पर बातचीत की थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान अनुच्छेद तीन सौ सत्तर पर पस्त हो गया। चीन को छोड़कर अन्य किसी भी देश ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। भारत पर उसने आरोप लगाया।
लेकिन उसे निराश होने पड़ा। यहां तक कि बाद में चीन के राजदूत झांग जुन ने भारत और पाकिस्तान से अपने मतभेद शांतिपूर्वक सुलझाने की सलाह दी। वैसे चीन का यह कहना गलत है कि भारत ने एकतरफा निर्णय लेकर स्थिति को बदला है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। भारत ने अपने संविधान के अस्थाई अनुच्छेद को हटाया है। और अपने ही प्रदेश में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से बदलाव किया है। चीन को यह देखना चाहिए कि ने अपने दो मुस्लिम बहुल प्रदेशों में क्या किया। वैसे चीन की नजर पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर पर अपने निवेश पर ही है।
चीन को अपवाद मान लें, तो भारत के अधिकार को विश्व समुदाय का समर्थन मिला है। पाकिस्तान ने खुद अपनी फजीहत कराई है। यहां तक कि इमरान पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस का भी सम्मान नहीं कर सके। उन्हीने आजादी के मुख्य समारोह को इतनी तवज्जो नहीं दी। दुनिया को दिखाने के लिए इस दिन वह पाक अधिकृत कश्मीर में भाषण देने आ गए। यहां भी इन्होंने पाकिस्तान पर नहीं भारत, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और नरेंद्र मोदी पर अपना भाषण केंद्रित रखा। लगा ही नहीं कि वह अपने मुल्क की आजादी का जश्न मना रहे है।