डॉ दिलीप अग्निहोत्री




यह यात्रा भारत के लिए बहुत सम्मानजनक व उपयोगी सभी हुई। मोदी ने विदेश में अपना हौसला बनाये रखा। अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। वह अपनी यात्रा के दूसरे चरण में जब बहरीन में थे, तब उनको अरुण जेटली के निधन का समाचार मिला।


उन्होंने भारतीय मूल के लोगों के बीच उनका भावुकता से स्मरण किया। अपनी विवशता बताई। कर्तव्य बोध ने उन्हें विदेश में रोका। अरुण जेटली के पुत्र ने उनके संवेदना सन्देश के जबाब में कहा था कि आप राष्ट्रीय कार्य से विदेश यात्रा पर है। अपना कर्तव्य निर्वाह करके आयेगा। लेकिन स्वदेश लौटकर वह भावुक हुए। विदेश यात्रा पर जाते समय वह अपने परम मित्र अरुण अर्थात अरुण जेटली को छोड़कर गए थे। उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करके गए थे। नियति को कुछ और ही मंजूर था, मोदी लौटे तो उनके अरुण इस संसार को छोड़ चुके थे। नरेंद्र मोदी के लिए भावुकता का समय था।
वह विदेश से लौटकर अपने अरुण के घर गए। वह नहीं थे,,उनकी यादें थी, उनका चित्र था,, मोदी ने माल्यार्पण किया। राष्ट्र के प्रति विदेश में नरेंद्र मोदी ने अपने कर्तव्यों का जिस प्रकार पालन किया, वह अरुण जेटली जी के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि थी।