कई नाम हैं, जैसे- मैरीजुआना, केनेबीस और इन सबमें जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय है उसका नाम है ‘वीड’. देशी भाषा में कहा जाय तो गांजा. जी हां गांजा। दिल्ली में तो पचास-पचास रूपए की इसकी पुड़िया बिका करती हैं वह भी मशहूर जगहों में जैसे कनॉट प्लेस, सुभाष नगर, लाजपत नगर, निज़ामुद्दीन और न जाने कहाँ-कहाँ.
गांजे के नशे में आंखे लाल हो जाती हैं, पर इसका सेवन करने वालों के पास इसका भी इलाज होता है. वह अपने पास एक खास किस्म का आई ड्रॉप रखते है, जिसके प्रयोग से पल भर में आंखें मोती जैसी चमकने लगती हैं.
गंजेड़ी कहते हैं – यह महादेव का प्रसाद है, इससे कैंसर नहीं होता, यह पूरी तरह प्राकृतिक है, मानसिक शांति देता है, रचनात्मकता बनाता है लेकिन ये सभी बहाने हैं।
असल में व्यक्तियों में गांजा, अस्थाई व्यामोह और अन्य मनोविकारों के भयंकर जोखिम को पैदा कर सकता है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के एक प्राथमिक अध्ययन में ये बातें सामने आईं हैं। पिछले महीने ही इस स्टडी को जारी किया गया था। ऐसे व्यक्ति जिनमें हल्के या क्षणिक मनोवैज्ञानिक जैसे असामान्य विचार, संदेह इत्यादि लक्षण होते हैं और उनका मनोविकारों का पारिवारिक इतिहास रहा हो, उनमें गांजा और एल्कोहल के इस्तेमाल से इसका जोखिम ज्यादा होता है।
गांजे से अक्सर व्यवहार संबंधी गड़बड़ियां पैदा हो जाती हैं और याददाश्त को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।
भारत में कई हिस्सों में लोग गांजे या भांग का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं कि इससे कुछ नुक़सान नहीं होता, लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि गांजा मानसिक बीमारियों की वजह बन सकता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ दुनिया भर में क़रीब डेढ़ करोड़ लोग रोज़ाना गांजे का किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी और ड्रग्स से काफ़ी ज़्यादा है. इसका सबसे ज़्यादा ख़तरा युवाओं में ख़ासकर किशोरों को होता है.
नए शोध बताते हैं कि किशोरों के गांजा इस्तेमाल करने से उनमें डिप्रेशन, शिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है. शोध में सामने आया है कि गांजे का सेवन करने से दिमाग़ के दो महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटरों पर असर पड़ता है. ये हैं सेरोटोनिन और नोराड्रेनलीन. ये दोनों दिमाग़ में भावनाओं को, ख़ासकर डर की भावना को नियंत्रित करते हैं.
– पंकज चतुर्वेदी की वॉल से