कितनी सरकारें आयी और चली गयी लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं बदला, जैसा कल था वैसा आज भी है। ये दास्तान एक बूढ़ी माँ और उसके अंधे बेटे की है बूढ़ी माँ अपने अंधे बेटे के साथ सब्जी बेचती है और माँ अपनी आँखों से बेटे को सहारा देकर राह दिखाती है और इसके बाद वह सब्जी बेचने न जाने कितने किलोमीटर दूर तक दोनों चले जाते हैं कभी सब्जी बिकती है और कभी नहीं क्योंकि कुछ लोग उनको इस फटेहाल में देखकर उनसे मुँह सिकोड़कर निकल जाते हैं और यह बेचारे अपनी किस्मत को कोसते हुए आगे बढ़ जाते हैं।
बूढ़ी माँ कहती हैं बेटे न जाने कितनी सरकारें आयी और चली गयी लेकिन कुछ जीवन में नहीं बदला। सोचा था बेटे की शादी कर दूंगी, लेकिन गरीबी और इसकी आँखे न होने से कुछ नहीं हो पाया। अब तो दूर तक चला भी नहीं जाता। देखो बेटा अभी और कितना दुःख जेना बाकि हैं।