70 और 80 के दशक में बॉलीवुड में विजुअल इफेक्ट्स (VFX) या CGI का नामोनिशान नहीं था। एक्शन सीन असली होते थे, और कई फिल्मों में हीरो असली जंगली जानवरों से लड़ते नजर आते थे। ये सीन खतरनाक थे, लेकिन दर्शकों को रोमांच देते थे। ट्रेनर जानवरों को कंट्रोल करते थे, फिर भी रिस्क बहुत था। आज एनिमल वेलफेयर नियमों की वजह से ऐसे सीन बनाना मुश्किल है। उस दौर में धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे स्टार्स ने कई बार असली शेर, बाघ या चीते से मुकाबला किया।

धर्मेंद्र की ‘मां’ (1976)
एम. ए. थिरुमुगम निर्देशित इस फिल्म में धर्मेंद्र एक पूर्ण विकसित शेर के साथ सीधा मुकाबला करते हैं। फिल्म मनुष्य और जानवर के बंधन पर आधारित थी, हेमा मालिनी भी थीं। सेट पर रियल शूटिंग हुई, कोई डुप्लीकेट नहीं। यह सीन फिल्म का बड़ा आकर्षण था।
धर्मेंद्र की ‘कर्तव्य’ (1979)
मोहन सेगल निर्देशित इस फिल्म में धर्मेंद्र फॉरेस्ट ऑफिसर की भूमिका में हैं। एक सीन में चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा गाना गाने के बाद मुन्नी पर शेर (या चीता) हमला करता है। धर्मेंद्र उससे लड़ते हैं। शूटिंग के दौरान चीता अचानक हमलावर हो गया, धर्मेंद्र ने उसका गला पकड़कर कंट्रोल किया। काफी प्रयास के बाद ट्रेनर ने स्थिति संभाली। रेखा और अरुणा ईरानी भी फिल्म में थीं। यह सीन फिल्म की सफलता का बड़ा कारण था।

अमिताभ बच्चन की ‘खून पसीना’ (1977)
इस फिल्म में अमिताभ असली बाघ से कुश्ती करते हैं। स्टंट डायरेक्टर्स उन्हें पागल कहते थे क्योंकि रिस्क बहुत था। अमिताभ ने खुद बताया कि बाघ की ताकत का अंदाजा नहीं था। सीन फिल्म का हाईलाइट था।
अमिताभ की अन्य फिल्में
‘मिस्टर नटवरलाल’ (1979) में रेखा के साथ बाघ से लड़ाई। ‘कुली’ (1983) में ईगल अल्लाह रक्खा उनका साथी था, जो फाइट में मदद करता है। ‘मर्द’ (1985) में डॉग मोती और हॉर्स बादल जैसे जानवर हीरो की मदद करते थे।
राजेश खन्ना की ‘हाथी मेरे साथी’ (1971)
यह फिल्म जानवरों पर आधारित क्लासिक है। राजेश खन्ना चार हाथियों रामू, लक्ष्मण आदि के साथ रहते हैं। हाथी फिल्म के मुख्य किरदार थे, भावनात्मक बंधन दिखाया गया। तनुजा लीड हीरोइन थीं।
और भी हैं उदाहरण
उस दौर में कई फिल्मों में रियल जानवर थे। ‘सफेद हाथी’ (1977) में सफेद हाथी मुख्य भूमिका में। ‘परिवार’ (1987) में मिथुन चक्रवर्ती के साथ कुत्ते कार चलाते तक दिखाए गए। ‘जंगली’ में हीरो शेर से लड़ता है। ये सीन आज CGI से बनते हैं, लेकिन तब असली रिस्क था। दर्शक इन्हें देखकर हीरो को असली बहादुर मानते थे। ये सीन उस निडर फिल्म मेकिंग के दौर की याद दिलाते हैं, जब स्टार्स जान जोखिम में डालकर एक्शन करते थे। – प्रस्तुति : सुशील कुमार






