दिलीप अग्निहोत्री


सुनील गवास्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर आदि बधाई के पात्र है। इन्होंने पाकिस्तान की साजिश समझी। वह कुछ भारतीयों को बुलाकर यह प्रचार करना चाहता था कि वहां पाकिस्तान को लेकर मतभेद हैं। इस योजना के तहत नवजोत सिद्धू को निमंत्रण भेजा गया। जबकि पूरे कैरियर में इमरान ने उन्हें कभी तरजीह नहीं दी थी। लेकिन उन्हें यकीन था कि कुछ समय पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए सिद्धू निमंत्रण मिलते ही दौड़ पड़ेंगे। जबसे कांग्रेस में गए है उन्हें भी नरेंद्र मोदी को घेरने वाले मुद्दों की तलाश रहती है। गलतफहमी इतनी की अपनी यात्रा की तुलना भी मोदी से कर रहे है।
यदी पूरे घटनाक्रम पर गौर करें तो सब कुछ सुनियोजित पटकथा जैसा लगेगा। वहां के सेना प्रमुख का सिद्धू को गले लगाना, पाक अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति के बगल में कुर्सी देना मात्र सन्योग नहीं था। यह सब भारत के खिलाफ होने वाले प्रचार के शॉट थे। जिसमें पाकिस्तान का सेना प्रमुख शांति का हिमायती दिख रहा है। जबकि सीमापार का आतंकवाद पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में चलता है।
सिद्धू और इमरान की जुगलबंदी भी पटकथा में नग्में जैसी है। चंद घण्टो में इमरान ने पहचान लिया कि शांतिदूत आया है, भारत में अन्य लोग शांति वीरोधी है। अगली लाइन सिद्धू ने गाई। उन्होंने भी कुछ घण्टो में पता कर लिया कि पाकिस्तान के लोग शांति चाहते है। सिद्धू के कहने का यही नीतार्थ हुआ कि भारत के लोग शांति नही चाहते। सिद्धू ने कहा, पाकिस्तान में मुझे साफ महसूस हुआ कि वहां के लोग शांति और दोस्ती चाहते हैं। वे चाहते हैं कि दाेनों देशों के बीच रिश्ते बढ़ें अौर वे करीब आए। दाेनों देशों के बीच सहयोग और व्यापार कायम हो। सिद्धू ने कहा इसकी में हमारा भला है अौर उनका भी। हमें भी अपना दिल बड़ा करना चाहिए, ताकि न शांति और मोहब्बत की रहा निकले।
इमरान ने कहा मेरे शपथग्रहण समारोह में शिरकत के लिए सिद्धू को शुक्रिया कहता हूं। वह शांति के दूत थे, और उन्हें पाकिस्तान की जनता की ओर से प्यार और लगाव ही दिया गया। भारत में जो लोग उन्हें निशाना बना रहे हैं, वे उपमहाद्वीप में शांति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। शांति के बिना हमारे लोग तरक्की नहीं कर सकते हैं।विडंबना देखिये जिस इमरान ने सिद्धू को अपमानजनक ढंग से नजरअंदाज किया था, वही उन्हें शांतिदूत बता रहा है। पाकिस्तान को पता था कि सिद्धू का लौटकर भारत में विरोध होगा। शहीदों के परिजन नाराजगी व्यक्त करेंगे। तभी इमरान उन्हें शांति दूत बताएंगे। मतलब भारत सरकार शांति नहीं चाहती ,लेकिन पंजाब का एक मंत्री शांति दूत बना है।
यदि सिद्धू को अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारियों का ख्याल होता तो अव्वल वह पाकिस्तान जाते नहीं, गए थे तो भारत की वर्तमान नीति बता देते। यह कि भारत शांति चाहता है, लेकिन पहले पाकिस्तान को सीमापार का आतंकवाद रोकना होगा। लेकिन सिद्धू पाकिस्तानी भाषा बोल रहे थे। उनका कहना था कि पाकिस्तान शांति चाहता है। भारत एक कदम चले तो पाकिस्तान दो कदम चलेगा। सिद्धू का यह कथन शर्मनाक है। आतंकवाद रोककर पहला कदम तो पाकिस्तान को उठाना है।
सिद्धू के पाकिस्तान की हिमायत वाले इस बयान से जाहिर है कि यह उनकी व्यक्तिगत यात्रा नहीं थी। पाकिस्तान ने उनका उपयोग किया है। लेकिन सिद्धू को इस पर भी कोई शर्मिदगी नहीं है।
जाहिर है कि अपने दोयम दर्जे के परिचित को पाकिस्तान बुलाना इमरान की सोची समझी रणनीति थी। सिद्धू जाने अनजाने एक मोहरा बने थे। राष्ट्रीय महत्व के विषयों को मसखरी में लेना घातक होता है।