उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान एवं संस्था विजय बेला एक कदम खुशियों की ओर” के संयुक्त तत्वावधान में धर्मवीर भारती जी की कालजई रचना अंधायुग का मंचन संस्कृत में किया गया। कार्यक्रम का उद्दघाटन डॉ. इंद्रमोहन रोहतगी जी के द्वारा किया गया, वहीं कार्यक्रम मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. सी.बी.सिंह प्रोफेसर सी एस ए यूनिवर्सिटी कानपुर एवं डॉ. सवितुर गंगवार प्रोफेसर संस्कृत विभाग डी ए वी कॉलेज कानपुर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। डॉ नवलता के द्वारा संस्कृत में अनुवादित एवं चन्द्रभाष सिंह द्वारा निर्देशित नाटक को कलाकारों ने अपने अभिनय से जीवंत बना दिया।
वर्तमान में हो रहे वैश्विक युद्धों के खतरों को देखते हुए नाटक की प्रस्तुति अधिक प्रासंगिक हो गई।
नाटक में दिखाया गया कि जब-जब स्वार्थ बस मर्यादा तोड़ी गई तब-तब महाविनाश हुआ है। नाटक में पौराणिक कथा के माध्यम से आधुनिक भाव बोध को स्थापित किया गया है। इस नाटक में अमर्यादित और अनैतिक आचरण का विरोध दिखाई देता है।
नाटक में यह भी दिखाया गया है कि संभ्रांत वर्ग के व्यक्तियों की चुप्पी से पड़ने वाला प्रभाव कितना भयानक हो सकता है। नाटक कर्म योग का संदेश भी देता है, मानव भविष्य निर्धारित नहीं है, मानव अपने कर्मों से भविष्य को बदल सकता है। नाटक के अनुसार महासंग्राम के बाद विजय एक लंबा धीमा और तिल-तिल कर फलीभूत होने वाला आत्म घात है।
मंच पर जूही कुमारी, निहारिका कश्यप, सौरभ शुक्ला,सुंदरम मिश्रा, अग्नि सिंह, विशाल श्रीवास्तव, आशीष सिंह, विशाल वर्मा, कोमल, प्रणव श्रीवास्तव, प्रजापति, अनुराग शुक्ला, दीपांशी धीमान, जानवी कुरील, रितिका श्रीवास्तव, निशांत पटेल, प्रियम्वदा मिश्रा, संजय, साक्षी अवस्थी, हूर जहाँ, सोनम विश्वकर्मा,एवं आदित्य विभाकर सिंह ने अभिनय किया, वहीं नाटक की प्रकाश परिकल्पना आकाश सिंह, पार्श्व संगीत चन्द्रेश पांडेय, मंच संचालन सुकृति दीक्षित, व सह निर्देशन जूही कुमारी का था। एक महीने की इस कार्यशाला में प्रशिक्षणार्थियों को संध्या त्रिपाठी के द्वारा संस्कृत का प्रशिक्षण दिया गया।