डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भाजपा का इतिहास अमित शाह के बिना पूरा नहीं हो सकता। उनके प्रबंधन और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा लगातार दूसरी बार बहुमत से केंद्र की सत्ता में पहुंची है। इसी अवधि में भाजपा का उन क्षेत्रों में भी प्रभावी विस्तार हुआ,जहां वह कभी मुकाबले में भी नहीं हुआ करती थी। पश्चिम बंगाल में वह मुख्य मुकाबले में आएगी। असम सहित पूर्वोत्तर में उसने पहली बार सत्ता हासिल की। अमित शाह और नरेंद्र मोदी के पहले भाजपा के नेतृत्व में कभी हरियाणा व महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनी थी। दोनों प्रदेशों में उसने दूसरी बार जीत दर्ज की। केरल, तमिलनाडु, आंध्र,तेलंगाना, जम्मू कश्मीर उड़ीसा,आदि प्रदेशों में उसके मत प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।
अमित शाह और भाजपा की यात्रा नामक पुस्तक के लखनऊ में परिचर्चा का प्रतीकात्मक महत्व है। उत्तर प्रदेश में भाजपा का जब भी इतिहास लिखा जाएगा,वह अमित शाह के उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा। इस संदर्भ में अमित शाह का अध्याय उल्लेखनीय रहेगा। उत्तर प्रदेश में लंबे समय से मुख्य मुक़ाबले से बाहर चल रही भाजपा का अमित शाह के प्रबंधन से ही जीर्णोद्धार हुआ था।
अमित शाह का राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण उत्तर प्रदेश के प्रभारी रूप में हुआ था। उस समय यहां की राजनीति सपा और बसपा में सिमटी थी। करीब डेढ़ दशक में अनेक प्रभारी हुए, प्रदेश अध्यक्ष हुए, राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए, लेकिन भाजपा के रथ का पहिया दलदल से बाहर नहीं निकल सका। अमित शाह जब उत्तर प्रदेश के प्रभारी होने के बाद ही स्थितियां बदलने लगी। अमित शाह का प्रबंधन जमीन पर प्रभाव दिखाने लगा था। उन्होंने नेताओं की जगह जमीनी कार्यकर्ताओं और निष्ठावान समर्थकों से सम्पर्क किया, उनसे फीड बैक लिया। उसके आधार पर रणनीति बनाई। सपा बसपा के वर्चस्व में जकड़ी राजनीति को तोड़ना मुश्किल लग रहा था। लेकिन अमित शाह ने इसको संभव करके दिखा दिया।
निश्चित ही उनके ऊपर लिखी गई पुस्तक राजनीति में सक्रिय लोगों के लिए उपयोगी साबित होगी।
पिछले लोकसभा चुनाव के समय अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। तब भाजपा ने यहां से अप्रत्याशित रूप से तिहत्तर सीट जीती थी। जबकि इसके पहले वह सपा बसपा से बहुत पीछे रहा करती थी। जाहिर है कि अमित शाह का प्रबंधन अद्भुत है। अमित शाह और भाजपा की यात्रा पुस्तक में उनके विषय में बेहतर व रोचक जानकारी दी गई है। इसे अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी ने संयुक्त रूप से लिखा है। यह अमित शाह की जीवनी नहीं है। लेकिन उनकी व भाजपा की यात्रा का प्रमाणिक वर्णन किया गया। इस प्रकार यह पुस्तक अपने नाम को चरितार्थ करती है। इस अवधि में भाजपा ने आमजन से जुड़े मुद्दे प्रभावी ढंग से उठाए। इसी के साथ प्रबंधन कुशलता को भी महत्व दिया। उसी के आधार पर चुनावी रणनीति बनाई गई। जिसके बेहतर परिणाम पार्टी को हासिल हुई। संगठन से जुड़े लोगों को लगातार सक्रिय रखने का प्रयास किया गया। उचित समय पर अनेक मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया गया। प्रचार तंत्र में आधुनिक तकनीक को शामिल किया गया। यह रणनीति उत्तर प्रदेश में कारगर रही। असम,त्रिपुरा आदि में भाजपा की सरकार बनी। यह अमित शाह की कुशल रणनीति का ही परिणाम था। अमित शाह की ओर से किए गए कार्यों को भी इस किताब में दिया गया है।
गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद अन्य पार्टियों के नेता विश्राम करने चले गए। जबकि अमित शाह वहां से तत्काल त्रिपुरा रवाना हो गए। वहां चुनाव प्रचार में जुट गए। इससे उनकी कार्यशीली का अनुमान लगाया जा सकता है। यूपीए सरकार ने अमित शाह को साजिश के तहत घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। लेकिन न्यायपालिका से उन्हें इंसाफ मिला। इस पुस्तक में कई रोचक प्रसंग है। बताया गया कि अमित शाह अत्यधिक व्यस्तता के बाद भी नियमित डायरी लिखते हैं। यह तथ्य उन्होंने स्वयं स्वीकार किया। लेकिन कहा कि यह प्रकाशित कराने के लिए नहीं है। शाह इसका उपयोग स्व मूल्यांकन के लिए करते है। पुस्तक में दावा किया गया कि अमित शाह ज्योतिष शास्त्र के भी जानकार हैं। बचपन में वह ज्योतिष शास्त्री के संपर्क में आए थे। उनसे नियमित चर्चा होती थी। इससे उनको ज्योतिष ज्ञान प्राप्त हुआ।
अपनी पोती के जन्म से पूर्व शाह ने कहा था कि घर में लक्ष्मी आ रही है। वह शतरंज के अच्छे खिलाड़ी है। कहा गया कि वह शतरंज खेलते समय चाल गिनते थे,समय नहीं। कितने चाल में विरोधी को परास्त करना है, यह उनका लक्ष्य होता है और इसी लक्ष्य को लेकर वे हर चाल चलते हैं। वह समय का अनुशासन मानते है, लकी घड़ी नहीं पहनते। वह मानते है कि राजनीतिक जीवन में उपहार देने की शुरुआत घड़ी और कलम से होती है। राजनीतिक जीवन में उपहार की संस्कृति को रोक देने के लिए घड़ी न पहनने का निर्णय लिया। वह सादगी पसंद है, प्रत्येक परिस्थिति को सहजता से स्वीकार करते है।
अमेठी में उनकी बैठक एक गोदाम में हुई थी। बिलंब हुआ तो शाह ने उसी गोदाम में ठहरने का निश्चय किया। वह छत पर गए और रात्रि विश्राम के लिए स्थान स्वयं ढूंढ लिया। उसी अव्यवस्थित कमरे में सो गए। इस घटना से पता चलता है कि वह बड़े नेता होने के बाद भी अपने की पार्टी का कार्यकर्ता ही मानते है।