सीमा चतुर्वेदी
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा से प्यार करने वाला मुस्लिम समाज अपने पैगम्बर के किरदार, तालीम, नसीहत और हदीस की राह पर चले तो तरक्की, तालीम, अनुशासन, इंसानियत व इत्तेहाद इस समाज का पहला प्यार होगा।
दुनियाभर के मुसलमानों की तरह भारत का मुस्लिम समाज भी अपने पैगंबर को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है। लेकिन ये प्यार कभी-कभी अधूरा सा दिखता है। प्यार पूरी तरह से सच्चा होता तो मोहम्मद साहब के किरदार, उनके उद्देश्यों- हदीसों से प्रभावित दिखता। कहा जाता है कि रसूल शहर-ए-इल्म थे, इसलिए मुस्लिम समाज को शिक्षा में आगे आने की पुरज़ोर कोशिश करनी होगी। एक बूढ़ी औरत द्वारा मोहम्मद साहब पर कूड़ा फेंकने की कहानी नसीहत देती है कि दुश्मन से भी प्यार करो। लेकिन क्या मुसलमानों ने दुश्मन से भी प्यार करने का किरदार पेश किया ?
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मुसलमानों के हालात शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी जरूरतों में बद से बद्तर हैं।
ऐसे में जरुरत इस बात की है कि अपने पैगंबर के किरदार पर अमल करते हुए ये समाज शिक्षा में आगे बढ़े। अपने बच्चों को अनुशासन, आपसी सौहार्द जैसे सुसंस्कार देकर तरक्की की उंचाई की राह दिखाए। भारतीय जनता पार्टी का अल्पसंख्यक समाज के प्रति क्या नजरिया है ये अलग विषय है पर आंकड़े बताते हैं कि केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों की जनकल्याणकारी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुस्लिम समाज हासिल कर रहा है। क्योंकि इस समाज को फ्री राशन, इज्जत घर, पक्का मकान, आयुष्मान कार्ड जैसी योजनाओं की सर्वाधिक जरुरत भी है।
कभी कला साहित्य, शिक्षा, व्यापार और विज्ञान में अपनी बराबर की मौजूदगी दर्ज करने वाला ये समाज अपने तमाम हुनरों को व्यवसायिक बनाने के लिए योगी-मोदी सरकारों की योजनाएं “एक जनपद एक उत्पाद, एम एस एम ई, आर टी ई, स्टार्टअप का खूब लाभ लेने की कोशिश करे। ये समाज सरकारी योजनाओं से प्यार का ऐलान भी करे। जनकल्याणकारी सरकारी योजनाओं से प्यार की तख्तियां टांगे, पोस्टर लगाए तो भी अच्छा है। क्योंकि आई लव सरकारी योजनाओं का कम्पेन उन गरीब, जरुरतमंद, हुनरमंद मुस्लिमों तक पहुंचे जो इन योजनाओं से वाकिफ नहीं हैं और उन तक इन सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
मुस्लिम समाज के खास लोग, उलमा, धार्मिक गुरु, धार्मिक नेता या इस समाज का वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल काश अकलियत का सही मार्गदर्शन करते।
हांलांकि आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में मोदी-योगी सरकारों में ये समाज शिक्षा में कुछ आगे बढ़ा है। पहले की अपेक्षा अधिक अनुशासित हुआ है, आपराधिक दुनिया में इनकी भागीदारी कम हुई है। प्रतियोगी/यूपीएससी परीक्षाओं में मुस्लिम युवाओं की मौजूदगी बढ़ रही है। बावजूद इसके कुछ धार्मिक नेता और राजनीतिक दलों की तरफ से समय समय पर मुस्लिम नौजवानों को भड़का कर उनकी जिन्दगी को नरक बनाकर खुद की राजनीति को चमकाने का गुनाह जारी है।
देश, प्रदेश और समाज के लिए ये बेहतर होगा कि मुस्लिम समाज किसी के बहकावे में आकर भीड़ बनकर लाठियां ना खाएं, जेल ना जाए और आई लव डेवलेपमेंट-आई लव एजूकेशन की नियत कर मोहम्मद साहब के सौहार्दपूर्ण और तरक्की पसंद किरदार का नमूना पेश करे।