कमल किशोर ‘भावुक’ जी का साहित्य के क्षेत्र में एक चर्चित नाम है अभी हाल ही में उन्होंने लखनऊ दूरदर्शन पर अपनी एक धमाकेदार प्रस्तुति दी, पेश हैं कुछ अंश-
तेरे बिन फीके लगे तीज और त्यौहार,
गूंगे का गुण हो गया तेरा मेरा प्यार
दोहा….
क्या उत्तर होगा यही, सोच दुखी है प्रश्न
गुब्बारों के गांव में नागफनी के जश्न
मुक्तक…
इन दिनों हम दूरियों के देश में हैं
कुछ न कुछ मजबूरियों के देश में हैं
ख्वाइशें और क्या है बेचारी बकरियां हैं
आजकल जो छोरियों के देश में.
जिंदगी में एक स्वप्न सुहावना है
जिंदगी का नाम ही संभावना है
तुम भले कुछ भी कहो इस जिंदगी को
जिंदगी तो मृत्यु की प्रस्तावना है
श्वांस के रथ पर विचरती सारथी हूं
प्रणय के मंदिर में प्रफुल्लित प्रार्थी हूं
और शिविर में संसार के यह जिंदगी तो
कुछ दिनों के वास्ते शरणार्थी है
ग़ज़ल: बात में हम भी असर रखने लगे
देश – दुनिया की ख़बर रखने लगे।
पाँव में हम भी सफ़र रखने लगे।
रास्ते तो ख़ुद – ब – ख़ुद बनते गये,
पाँव अपने जिस डगर रखने लगे।
साँप भी ये देखकर हैरान है,
आदमी इतना! ज़हर रखने लगे।
प्यास खेतों की उन्हें मालूम क्या,
कागज़ों में जो नहर रखने लगे।
आज तूने मान ली, तो यूं लगा –
बात में हम भी असर रखने लगे।
‘भावुक’: सन्नाटे में सरगम से
4 Comments
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