जैसे मोहम्मद अली ने कहा कि वह वियतनाम में युद्ध लड़ने नहीं जाएगा
मैं भी कहता रहा कि मध्यवर्गीय महत्वाकांक्षा का फिदायीन नहीं हूं मैं
मोहम्मद अली को जेल में डाल दिया गया मैं भटकता रहा
भारतीय अर्थ और समाज के खुले जेल में ढहते हुए शहरों के काले पानी में
मोहम्मद अली की तरह बारह साल की उम्र में मैंने लड़ना सीख लिया था
कविता मेरी मुक्केबाजी थी
जैसा कि मोहम्मद अली ने एक कवि की तरह कहा कि वह तितली की तरह उड़ता था और मधुमक्खी की तरह डंक मारता था मैं भी घायल रुआंसा और कटखना था मुहम्मद अली की तरह मार खाता कभी कभी जीतता मेरा चेहरा पेंटरो, पीला और नीला था और आत्मा का रंग क्या बता सकूं जो शहरों में पता नहीं किस कबाड़ में कहां किस अंधेरे में खो जाती थी
सई के तट पर या यमुना और गंगा के मैदानों में मैं विकल था
कि अपनी अद्वितीयता का भार उठाए नहीं उठता था
आटे की बोरी की तरह अपने होने का आह्लाद कंधे तोड़ देता था
तो घिरे हुए मोहम्मद अली-सा मैं कह पड़ता था कि मैं हूं महानतम
अपनी गरिमा के सन्नाटे में जैसे हर कोई कहता है
कि मैं हूं महानतम कहना भी चाहिए कि I AM THE GREATEST
मोहम्मद अली के कहने की तरह कि मैं हूं अमेरिका
मैं भी कहता रहा कि मैं हूं हिंदुस्तान
अपने निर्वासन और बहिष्कार के विषम में.
◆ सदानीरा के 17वें अंक में प्रकाशित देवी प्रसाद मिश्र की कविता ‘मोहम्मद अली’ आज उनके जन्मदिन पर.
- अविनाश मिश्र