जन जन का कारवां
सदा रहा है साथ
अब कलश ले हाँथ में
वैसा ही सैलाब।।
काजल की थी कोठरी
रहे सदा बेदाग
शत्रु नहीं था कोई भी
पक्ष विपक्ष सम्मान।।
वाणी में ओज था
भाषण हो या काव्य
जब तक काया ने साथ दिया
नहीं किया विश्राम।।
निर्मल मन अटल हुआ
नहीं द्वेष व राग
चलते चलते सांझ हुई
यही नियम संसार।।
– दिलीप अग्निहोत्री