आज हम ही क्या समूची विश्व के लोगों की विज्ञान पर एवं विज्ञान द्वारा आविष्कृत चीजों पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है और लगातार यह स्थिति आगे बढ़ती जा रही थी लेकिन अब इन वस्तुओं से थोड़ा दूरी बनाते हुये हम लोगों को देख सकते हैं और इस स्थिति में समाज के लोगों के मनोभाव में तबदीली होते आभास होने लगा है क्योंकि मनुष्य एक बार फिर से प्रकृति की ओर झुकता हुआ आभास हो रहा है।
आज के समय में विज्ञान से और विज्ञान से बनी वस्तुओं से मनुष्यों द्वारा कुछ दूरी बनाता नजर आने लगा है, क्योंकि दुनिया का प्रत्येक मनुष्य आज पर्यावरण एवं पशु पक्षियों, के अलावा हमारे पास उपलब्ध जल स्त्रोतों और वायु प्रदूषण की बातें करता नजर आने लगा है जिससे लगता है कि आज हमारे समाज के लोगों में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की चिंता की भावनायें पैदा हुई है जो की निश्चित रूप से स्वागत योग्य तो है ही इसके अलावा हमारे प्रकृति को बचने सहेजने की कोशिशों को भी बल प्रदान करता है।
आज विज्ञान के जरिये हमारे देश समाज और दुनिया ने तरक्की जरूर कर ली है आज प्रकृति के पर्यावरण के विकृत होते चले जाने से असमय बारिश, भूकंप, आंधी तूफान, और अनेकों महामारियां जैसे विकट समस्याएं अनिको रूप में हमारे सामने अपना मुहँ वाये खड़ा हैं। प्रत्येक वर्ष जनवरी से मार्च माहीने तक के समय में हमारे देश के खेतों में खड़ी फसलों पर पाला, ओला बृष्टि होने से इसकी मार किसानों से लेकर आम जनता पर पड़ती चली आ रही है।
आखिरकार आज मौसम इतना बेरुखी से क्यों पेश आ रहा है। आज से लगभग डेढ़ दो दशकों पहले मौसम का इस तरह के हालात नहीं हुआ करते थे। इस परिपेक्ष में हम कहे तो हमारे वैज्ञानिकों का ध्यान हम इंसानो की बुनियादि जरूरतों से हट जाने से हम स्वमं ही अपने लिये मुश्किलों के पहाड़ खड़े करते चले गये। विज्ञान का उपयोग उपभोक्तावादी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए अधिक इस्तेमाल किये जाने से प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों से मौसम विकृतियां पैदा होती चली गयी और जिसका प्रभाव देश के खेती किसानी से लेकर अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ना लाजमी है।
यहाँ एक बात का उल्लेख करना बहुत प्रासंगिक ही होगा कि जब किसी प्रकार की आपदा या महामारी के द्वारा देशों की भौगोलिक सीमाओं की पाबंदियों को सम्मान नहीं किये जाने का दुष्प्रभाव आज बिल्कुल स्पष्ट झलक रहा है।
- जी के चक्रवर्ती