हर कोई कह रहा पांच साल तक चलेगी सरकार,
हम तो जीत कर भी मझधार में फंस गये यार।
मुखिया ने कर दिया कैद होटल में,
आखिर किस पार्टी से इस समय करें प्यार।
मुखिया कर रहा सौदा इधर-उधर घूमकर,
हमको कहीं किसी से बतियाने नहीं देता।
आखिर कैसे निकलेगा हमारा चुनावी खर्चा,
हमको तो वह खिसियाने भी नहीं देता।
हमको बता रहा पार्टी का सिद्धांत,
खुद सिद्धांत का रख दिया है ताक पर।
चारों तरफ कर रहा है सौदा,
मांग रहा है पैसा, हमको रखकर साख पर।
यह नहीं सोचता कि नहीं मिला हमको तो,
विधानसभा में शुरू हो जायेगा रार।
हम लोगों को जो पार्टी देगी पैसा,
आज उसी की बनेगी सरकार।
- उपेंद्र नाथ राय ‘घुमंतू’