अमृत युवा कलोत्सव 2022-23 का समापन
लखनऊ 15 जनवरी। नाटक में किन्नरों की व्यथा थी तो नृत्य प्रस्तुति में शिव और शक्ति का संगम, साथ ही गूंज रहा था युवा कलाकारों का अविरल धारा सा संगीत। अमृत युवा कलोत्सव 2022-23 के तीसरे और समापन दिन आज संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में गायन-वादन, नर्तन लोक और नाट्य की प्रस्तुतियां मंच पर खिलीं। साथ ही कलामण्डपम प्रेक्षागृह में कला समीक्षा पर कल की सकारात्मक चर्चा आज आगे बढ़ी। अमृत कलोत्सव की ये यात्रा क्रमशः अन्य शहरों में जारी रहेगी।
केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी के संग उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित इस त्रिदिवसीय आयोजन में अंतिम शाम पहली कड़ी के रूप में नाटक मंच पर उतरा।
इंद्रवती नाट्य समिति सीधी मध्यप्रदेश के कलाकारों द्वारा शिवनारायण कुंदेर के निर्देशन में मंचित मार्मिक नाटक ‘सरू’ किन्नरों के जीवन और परिस्थितियों के संग मानवीय मूल्यों की पड़ताल करता है। साथ ही भ्रूण हत्या और लावारिस छोड़ दिये जाने वाली बच्चियों की पीड़ा पर सवाल उठाता है।
कहानी किन्नर सुशीला द्वारा कचरे के ढेर से उठाकर लायी एक नन्हीं बच्ची को अच्छी तरह पालने और पढ़ाने लिखाने और अपने किन्नर होने के संघर्षों को लेकर है। बड़ी होती सरू एक दिन स्कूल से वापस ही नहीं आती। किन्नर पुलिस में प्राथमिकी तक करा पाती। बाद में सरू सड़क किनारे लथपथ मिलती है। किन्नर सरू को बचा तो नहीं पाते लेकिन उसके हत्यारे का पता लगाकर उसे मार देते हैं। मंच पर अनुभूति, कमल, बिष्णुकुमार, पंकज पुरोहित, राजेशकुमार साहिल खान, हर्षकुमार, रोहन ठाकुर, अमन राय व सर्वेश ने किरदारों को जिया। नाटक को दर्शनीय बनाने में मंच के पीछे संगीत में रोशनीप्रसाद, रजनीश जायसवाल, प्रजित, राकेश, राजेष, फिरोज, जगमीत और नीरज कुंदेर आदि का साथ रहा।
अयोध्या के मुकेशकुमार के 18 लोककलाकारों के दल ने प्रदेश के अवध अंचल की भूमि से जुड़े लोक उत्सवी माहौल को उत्साह भरे नृत्य संयोजनों में खूबसूरती से प्रस्तुत कर दर्शकों में जोश भर दिया। ये नृत्य खेती-किसानी के काम में थकन मिटाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्तुति में लोक कलाकारों का उत्साह देखते ही बनता था।
रुद्राक्षी वाराणसी के नृत्यदल और गुरु प्रेमचन्द होम्बल के शिष्य-शिष्याओं, गरिमा टण्डन, रूपम रघुवंशी, मो.आसिफ हुसैन व राजेन्द्र कुमार ने तिस्र गति व आदि ताल में भरतनाट्यम में रावण द्वारा रचित शिव ताण्डव पुष्पांजलि का प्रदर्शन किया। संगीत आर जयदास व नृत्य रचना डा.एस मेदिनी होम्बल की रही। इसी क्रम में सिद्धराम स्वामी कोरवार के संगीत व शंकर होम्बल की नृत्य संरचना में प्रसिद्व गीत- चाह नहीं सुरबाला के बालों में… की खूबसूरत प्रस्तुति दी। नट्टुवांगम व स्वर मेदिनी होम्बल के थे तो मृदंग, बांसुरी, वायलिन पर क्रमशः डा.बीएसवी प्रसाद, डा.राकेशकुमार व डा.शारदा प्रसन्ना दास ने कुशलता से साथ निभाया।
मंच पर पखावज और तबलावादन कर रहे दिल्ली के कुमार शुभाशीष पाठक और साथियों की क्रेशेन्डो वाद्यवृन्द प्रस्तुति में पहली रचना राग कलावती पर आधारित थी। इसके साथ वाद्यवृन्द ने राग हंसध्वनि में गणेश वंदना- वातापि गणपतिम भजे…. और राग भैरवी में मिले सुर मेरा तुम्हारा प्रस्तुत कर सुनने वालों को आह्लादित कर दिया। गायन में सुधीर कुमार के साथ ही सितार पर उमाशंकर प्रसाद, मृदंग पर विग्नेश जयरमन, वायलिन पर सिद्धेश गणेश, तबले पर नीरज कुमार और काहोन पर योगेश कुमार संगत कर रहे थे।
लच्छू महाराज की शिष्या कुमकुम आदर्श की अवधारणा और कोरियोग्राफी में लच्छू महाराज बैले सेंटर लखनऊ के कलाकारों अंजुल बाजपेयी, एकता मिश्रा, अंकिता मिश्रा, सीमा पाल, पीयूश पाण्डे, अनामिका वत्स व प्रेरणा विष्वकर्मा ने कथक संरचना ‘शिवशक्ति’ में लास्य, ओज और ताण्डव इत्यादि का समावेश कथक गतियों में करते हुए शिवत्व का उजागर किया। लच्छू महाराज की खासियत थी लास्य जो ओज से भरी इस प्रस्तुति में दिखाई दी। सुंदर गतियों व संयोजनों में प्रस्तुति ने स्पष्ट करना चाहा कि शिव के बिना शक्ति नहीं और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। संरचना में संगीत और गायन पण्डित धर्मनाथ मिश्र का था।
इससे पहले सुबह कलामण्डपम सभागार कैसरबाग में समीक्षक आलोक पराड़कर के संचालन में चली कला समीक्षा कार्यशाला में रंगनिर्देशक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा कि कलाकारों को भी कला समीक्षा की जानकारी होनी चाहिए। प्रो.सुनीरा कासलीवाल ने संस्कृति समीक्षा के छोटे-बड़े पाठ्यक्रम संस्थानों में चलाने की आवश्यकता दर्शायी। श्यामहरी चक्र ने कुछ दिलचस्प तथ्य रखते हुए बताया कि अखबारों में सम्पादकीय विभाग के लोग कला विधाओं के तकनीकी शब्दों से परहेज रखने को कहते हैं, जिससे समीक्षा सारगर्भित न होकर सामान्य सी लगती है। यहां नेमिचंद्र जैन और नटरंग पत्रिका की चर्चा जोरों से हुई।
गुरु विजयशंकर ने कहा समाज की जरूरत समझकर ही प्रस्तुतियां तैयार की जाती हैं और उनकी समीक्षा भी उसी स्वरूप में की जानी चाहिए। ऑनलाइन दर्शकों के साथ ही प्रेक्षागृह में उपस्थित डा.सृष्टि माथुर, कला समीक्षक राजवीर रतन, कलावसुधा की सम्पादक डा.उषा बनर्जी व प्रदीपकुमार अग्रवाल ने प्रासंगिक सवाल उठाए।