स्वयं शिकार करना गीदड़ के बस की बात नहीं थी दोनों के भूखे मरने की नौबत आ गई। शेर को यह भी भय सत्ता था कि खाने का जुगाड़ समाप्त होने के कारण गीदड़ उसका साथ न छोड़ जाए। शेर ने एक दिन उसे सुझाया: ‘देख जख्मों के कारण मैं दौड़ नहीं सकता।’ शिकार कैसे करूं, तू जाकर किसी बेवकूफ से जानवर को बातों में फंसा कर यहां ला। मैं उसे झाड़ी में छुपा रहूंगा। फिर उसका काम तमाम कर देंगें।
गीदड़ को भी शेर की बात जच गई वो किसी मूर्ख जानवर की तलाश में घूमता- घूमता एक कस्बे के बाहर नदी के घाट पर पहुंचा। वहां उसे एक मरियल सा गधा घास खता नजर आया। वह शक्ल से ही बेवकूफ लग रहा था। गीदड़ गधे के निकट जाकर बोला: पाए लागू चाचा! बहुत कमजोर हो गए हो! क्या बात है! गधे ने अपना दुखड़ा रोया क्या बताऊं भाई जिस धोबी का गधा हूं। वह बहुत क्रूर है दिन भर ढुलाई करवाता है और खाने को चारा भी नहीं देता नहीं!
गीदड़ ने उसे न्योता दिया ‘चाचा मेरे साथ जंगल चलो वहां बहुत हरी- हरी घास है। वहां तुम्हारी सेहत बन जाएगी। गधे के कान फड़फड़ाए राम- राम मैं जंगल में कैसे रहूंगा! जंगली जानवर मुझे मारकर खा जाएंगे। गीदड़ बोला ‘तुम्हें शायद पता नहीं जंगल में एक बगुला भगत जी का सत्संग हुआ था। उसके बाद सारे जानवर शाकाहारी बन गए हैं। अब कोई किसी को नहीं खाता।
गीदड़ ने कान के पास मुँह ले जाकर दाना फेंका। चाचू पास के कस्बे से बेचारी एक गधी भी अपने मालिक के अत्याचारों से तंग आकर जंगल में आ गई है। वहां वह हरी -हरी घास खाकर खूब लहरा गई है। तुम उसके साथ घर बसा लेना। गधे के दिमाग पर हरी -हरी घास और घर बसाने के सुनहरे सपने सजने लगे। वह गीदड़ के साथ जंगल की ओर ख़ुशी -ख़ुशी चल दिया। जंगल में वह गधे को उसी झाड़ी के पास ले गया, जिसमें शेर छिपा बैठा था।
इससे पहले कि शेर पंजा मारता, गधे को झाड़ी में शेर की नीली बत्तियों की तरह चमकती आंखें नजर आ गई। वह डर कर उछला, गधा भागा और भागता ही गया। शेर बुझे स्वर में गीदड़ से बोला, भाई इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम उसे दोबारा लाओ, इस बार गलती नहीं होगी!
गीदड़ दोबारा उस गधे की तलाश में कस्बे में पहुंचा। उसे देखते ही बोला चाचा तुमने तो मेरी नाक कटवा दी। तुम अपनी दुल्हन से डर कर भाग गए! भाई झाड़ी में मुझे दो चमकती आंखें दिखाई दी थी, जैसे शेर की होती हैं ।मैं भागता नहीं तो क्या करता। गधे ने शिकायत की।
गीदड़ ने नाटक करते हुए माथा पीटकर बोला: ‘चाचा! ओ चाचा, तुम मूर्ख हो झाड़ी में तुम्हारी दुल्हन थी। जाने कितने जन्मों से तुम्हारी वह राह देख रही थी। तुम्हें देखकर उसकी आंखें चमक उठी, तो तुमने उसे शेर समझ लिया। इतना सुनते ही गधा बहुत लज्जित हुआ। गीदड़ की चाल भरी बातें ही ऐसी थी।
गधा फिर उसके साथ चल पड़ा। जंगल में वह झाड़ी के पास पहुंचते ही शेर ने उसे अपने नुकीले पंजे मार गिराया। इस प्रकार शेर और गीदड़ का भोजन जुटा।
सीख: दूसरों की चिकनी चुपड़ी बातों में आने मूर्खता कभी भी नहीं करनी चाहिए।
- नीतू सिंह