सवाल कई हैं लेकिन उत्तर एक आया वह यह भय बिन होये न प्रीत! मालूम हो कि लोगों की इस मिलीजुली प्रतिक्रिया को सोशल मीडिया ने विभिन्न रूप से दिखाया तो ऐसे में लेखक और कवि कहाँ पीछे रहने वाले थे! उन्होंने भी मीम्स और चुटकुलों के साथ शेरो – शायरी के अनोखे अंदाज में इसे पेश किया, कुछ एक ऐसा ही अंदाज लेखक पत्रकार राहुल गुप्त ने पेश किया जरा गौर फरमाइए और बताइयेगा कैसा लगा इनका अंदाज इस मेल एड्रेस पर editshagun@gmail.com
- बनकर लुटेरी, ‘सड़क’ अब मेरी छोटी सी हस्ती भी करेगी बर्बाद।
मैं जाऊँ कहाँ इसे छोड़कर मुझे हवा-पानी में चलना नहीं आता।।
- अब खाकी को मिला इख्तियार इतना।
सड़क पर चाहे लूट ले जिसको जितना।।
- यातायात का नया कानून खतरनाक इसलिये बना।
नोटबंदी के बाद देश की माली हालत अब इसे संभालनी है।।
- खौफ़ इस कदर अब आमजन में है।
कि सड़क पर चलने से दिल घबराता है।।
- कि मिला था वेतन माह में दो वक्त की रोटी के लिये।
लेकिन लुट गया अपनी सरकार से अपनी ही सड़क पे।।
- नहीं है पारदर्शिता के कोई संसाधन हर सड़क पर यहाँ।
आप कैसे बतायेंगे कितना जेब में गया कितना कोष में आया।।
- हाँ! सब तो हैं कागज़ात पूरे मेरी गाड़ी के मेरे पास।
पर मैं रिस्क नहीं लेता शायद बचे न इक निवाला मेरे पास।।
- बेटों को क्यूँ न हवलदार बनाया जाये।
अब मोटी कमाई तो सड़क पर है।।
- चलो अब बसों में भले असुविधा कितनी हो।
प्रदूषण भी कम होगा और दिल में बैठा खौफ भी।।
- इलाके में चल रहे इक्का-दुक्का वाहनों का अब दिल से करो इस्तक़बाल।
भले जानवरों सा वो तुम्हें लाद के चलें पर बड़े कर्ज से तुम खुद को बचा लोगे।।
- अच्छा है अब दुर्घटनाएं होंगी शायद कम।
पर नियम तोड़ने वाले तो सदा बेखौफ रहते हैं!!
- नियम तोड़ने वाले तो कल भी बेखौफ थे और आज भी।
उन्हें नहीं फर्क पड़ता कि उनका हश्र क्या होगा।।
- वैसे भी इस सड़क से बहुत भय था यहाँ।
चिंता बनी रहती थी अपनों के वापस आने की।।
– राहुल कुमार गुप्त