अंशुमाली रस्तोगी
चोर और चोरी के प्रति हमदर्दी रखता हूं। इसलिए किसी घर में हुई या साहित्यिक चोरी की कभी निंदा या विरोध नहीं करता। निंदा की भी क्यों जाए? अपने–अपने स्वभाव में हम सभी चोर ही तो हैं! ये बात अलग कि हमारी चोरी दुनिया की निगाह में नहीं आ पाती। उन्हें हम बचा ले जाते हैं।
मैं चाहता हूं कि चोरों का भी एक संगठन बनें। सिर्फ चोर ही उसके कर्ताधर्ता हों। सरकार उसे रजिस्टर्ड करे। जैसे– शेयर बाजार को कर रखा है। शेयर बाजार भी सट्टेबाज चोरों का अड्डा ही तो है। फर्क इतना है कि दुनिया और सरकार की निगाह में यह वैध है। इस बाजार में सबसे बड़े चोर बिजनेस चैनल्स पर आने वाले विश्लेषक हैं।
हमें खुश होना चाहिए कि चोरों ने धर्मनिरपेक्षता को संभाले और संजोए रखा है। इस सत्य से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि धरती पर चोरों से बड़ा धर्मनिरपेक्ष कोई नहीं, नेता, लेखक और बुद्धिजीवी भी नहीं।