डॉ दिलीप अग्निहोत्री
तकनीकी और व्यवहारिक रूप में सपा पर अखिलेश यादव का नियंत्रण निर्विवाद है। लेकिन यह पार्टी पीढ़ीगत बदलाव के दौर से गुजर रही है। सपा की स्थापना और उसे आगे बढ़ाने में जिन लोगों का निर्णायक योगदान था, वह मायूस है। संस्थापक मुलायम सिंह यादव नाराज तो बहुत बार हुए , लेकिन इतने मायूस कभी दिखाई नहीं दिए। कुछ दिन पहले उनकी व्यथा छलक पड़ी थी। एक समारोह में उन्होंने कहा कि अब कोई सम्मान नहीं करता, शायद मृत्यु के बाद ही सम्मान दिया जाए। कभी मुलायम के सर्वाधिक करीबी रहे अमर सिंह भी सपा के विरोध में खुलकर सामने आ गए। इसी के बाद सपा की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले शिवपाल ने अलग मोर्चा बना लिया। इसी के साथ तय हुआ कि सपा की पिछली पीढ़ी वर्तमान के साथ चलने की स्थिति में नहीं है।
मुलायम सिंह यादव सपा की कमजोर स्थिति और बसपा के साथ उसके गठबन्धन से भी आहत है। सपा का इतना कमजोर संख्या बल पहले कभी नहीं था। बसपा से मुलायम सिंह यादव ने भी समझौता किया था। लेकिन यह समझौता सरकार बनाने के लिए हुआ था। समझौते के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री भी बने थे। लेकिन उन्हें बसपा से मिले अपमान के बाद पद छोड़ना पड़ा था। दो जून गेस्ट हाउस कांड को बसपा प्रमुख मायावती भी अपने जीवन में कभी भूल नहीं सकती। इसी के बाद दोनों पार्टियों में शिखर से जमीन तक तनाव बन गया। एक दूसरे पर दो दशक तक जहर बुझे तीर चलते रहे।
सपा का एक ऐसा वर्ग भी है जो बसपा से गठबन्धन की बातों को पचा नहीं पा रहा है। ऐसे लोगों का शिवपाल यादव को समर्थन मिल सकता है।
शिवपाल सिंह ने कहा कि सपा में अपनी इज्जत न होने से मैं आहत हूं। मुझे किसी भी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था। उन्होंने ये भी कहा कि उस पार्टी में अब नेताजी का भी सम्मान नहीं किया जाता है। उनकी उपेक्षा से मैं बहुत दुखी हूं। उन्होंने कहा कि जिसका भी सम्मान सपा में नहीं हो रहा है, वे हमारी पार्टी में आ जाएं। शिवपाल सिंह ने भाजपा में जाने की बात को अफवाह बताया।
शिवपाल सिंह यादव ने विधिवत सेकुलर मोर्चा बनाने का ऐलान किया। उनकी पीड़ा भी दिखाई दी। कहा कि समाजवादी पार्टी लंबे संघर्ष के बाद बनी थी। लंबे समय से इसमें कोई काम नहीं दिया जा रहा है। न तो कोई पूछ रहा है। उनका प्रयास होगा कि ऐसे लोगों को जोड़ें जिनका समाजवादी पार्टी में सम्मान नहीं हो रहा है। इसीलिए सेक्युलर मोर्चा बनाकर अपने लोगों को काम दिया है।
शिवपाल ने भी कहा था कि सपा में उनका सम्मान नहीं हो रहा। आखिर कब तक उपेक्षा बर्दाश्त करूं। उन्होंने यह भी कहा था कि जो लोग कभी कुछ नहीं थे और आजकल जो कुछ भी हैं तो वह नेता जी मुलायम सिंह यादव की वजह से हैं। लखनऊ में लोहिया ट्रस्ट की कई बैठकें हुई हैं। माना जा रहा है कि इसी दौरान इस सेक्युलर मोर्चे के गठन पर की रूपरेखा बनी थी।
शिवपाल के मोर्चा बनाने के पीछे भाजपा की भूमिका का आरोप लगाना बेमानी है। इसी तरह क्या मुलायम की भावुकता के पीछे भी भाजपा की भूमिका देखी जाएगी। कोई किसी के कहने से भावुक नहीं होता। यह सब सपा की पारिवारिक स्थिति का परिणाम है। शिवपाल के मोर्चा बनाए जाने पर कोई आश्चर्य नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि वह दो वर्ष तक धैर्य कैसे बनाये रहे।
क्या यह सही नहीं कि अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह को अक्टूबर दो हजार सोलह में अपनी मन्त्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया था। ई तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्रीमंडल से अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को हटा दिया था। क्या यह भी किसी की साजिश थी। उन्हें प्रदेश पार्टी अध्यक्ष पद से पहले ही हटा दिया गया था। दो हजार सत्रह की शुरुआत में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से निष्काषित कर दिया गया था। इसके बाद शिवपाल की लगातार उपेक्षा हो रही थी। यह भी किसी बाहरी व्यक्ति का आरोप नहीं है ,बल्कि शिवपाल ने खुद अपनी व्यथा बताई है।
पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण के बाद अखिलेश ने अपनी टीम बनाई थी। यह स्वभाविक भी था। इसमें अखिलेश के हम उम्र लोगों का वर्चस्व है। जिन पुराने लोगों ने इस नई व्यवस्था से सामंजस्य बना लिया , उन्हें कठिनाई नहीं हुई। जो ऐसा नहीं कर सके ,वह उलझन में थे। ऐसे लोग शिवपाल के साथ जुड़ सकते है। उनके नवगठित मोर्चे के क्या भविष्य होगा, इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दीबाजी होगी, लेकिन इसमें संदेह नहीं पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं से शिवपाल का ही ज्यादा संवाद रहा है। इसकी प्रशंसा मुलायम सिंह यादव भी कर चुके है। फिलहाल बसपा के साथ गठबन्धन से नाराज सपा समर्थकों पर शिवपाल की नजर रहेगी।