बसपा प्रमुख मायावती मुस्लिम इलाकों में चुनावी भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा करती थीं मुख्तार अंसारी गरीबों का मसीहा है। लेकिन समय बदला और आज उसी मुख्तार को किनारे कर दिया। मालूम हो कि पंजाब से जब मुख्तार अंसारी को यूपी लाने का प्रयास हो रहा था तब सोशल मीडिया पर खूब मैसेजेज वालयल हुए कि उनकी गाड़ी भी विकास दुबे की तरह पलटेगी। व्हील चेयर पर मुख्तार का वीडियो भी आया, लेकिन मायावती का इस पर कोई बयान नहीं आया। चुनाव करीब है और अब मायावती ने मुख्तार को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। चुनाव करीब आते आते कुर्सी की माया कई ऐसे उलटफेर दिखाएगी।
एक कहावत है ‘सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’। ये कहावत यूपी की राजनीति में एकदम ठीक बैठती है। यहां कब क्या हो जाए, कौन सा दल कौन सा नेता क्या निर्णय लेकर सबको चौंका दे कोई भरोसा नहीं। राजनीति में कब पराए अपने और अपने पराए हो जाएं कुछ नहीं कहा जा सकता। यहां संबंध नफा-नुकसान देखकर ही निभाए जाते हैं। एक समय ऐसा था जब मुख्तार अंसारी को समाजवादी पार्टी में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो बसपा ने उन्हें शरण दे दी थी। आज उसी बसपा ने बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का टिकट यह कहते हुए काट दिया कि हमारी कोशिश है कि किसी भी बाहुबली और माफिया को आने वाले चुनाव में टिकट न दिया जाए। आखिर क्यों उन्हें ऐसा कदम उठाना पड़ा?
दरअसल यूपी में अब दागियों से ज्यादातर दल दूरी बनाना चाहते हैं बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुख्तार का टिकट काटकर इसके संकेत दे दिए हैं। योगी सरकार उत्तर प्रदेश में लगातार माफियाओं के खिलाफ ऑपरेशन चला रही है, जिससे आम लोगों में सरकार की छवि अच्छी बनी है। ऐसे में विपक्षी दलों पर माफियाओं और बाहुबलियों से दूरी बनाने का नैतिक दबाव बढ़ चुका है। साथ ही पिछले एक दशक में वोटरों का मूड भी बदला है।
कभी खलनायकों को अपने वोट के सहारे नायक बनाने वाले वोटर अब ऊबने लगे हैं और साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों व विकास की बात करने वालों को ही पसंद कर रहे हैं। यही बात बीएसपी सुप्रीमो भी अच्छे से समझ चुकी हैं कि मुख्तार की वजह से उनको बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसीलिए उन्होंने बाहुबलियों से दूरी बनाने का मन बना लिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती 2022 के विधानसभा चुनावों को 2007 के फॉर्मूले से लड़ने की तैयारी में हैं। वह एक तरफ मफियाओं से किनारा कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ सोशल इंजीनियरिंग की राह पर चल रही हैं। बीएसपी समझ चुकी है कि 2022 के यूपी चुनाव से पहले मुख्तार का जेल से बाहर आना संभव नहीं है। ऐसे में मायावती को लगता है कि पिछले 16 साल से लगातार जेल में रहने की वजह से मुख्तार का मऊ सीट पर दबदबा पहले से कम हुआ है, क्योंकि पिछले तीन चुनाव मुख्तार अंसारी ने सिर्फ 8 हजार या इससे भी कम वोटों से जीता है। ऐसे में यही मौका है जब मुख्तार से नमस्ते कर लिया जाए।
यह वही बसपा है जो 2017 में बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में सम्मान के साथ लाई थी। मुख्तार के साथ ही उनके भाई सिगबतुल्लाह और बेटे अब्बास भी मायावती की पार्टी में शामिल हुए थे। इनको बसपा ने बकायदा टिकट भी दिया था। वहीं, मायावती मुख्तार अंसारी के बचाव में खुलकर सामने आई थीं। समाजवादी पार्टी (सपा) से विधानसभा चुनाव टिकट की नाउम्मीदी मिलने के बाद माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपनी पार्टी में विलय कर लिया था।
हमारी ताक़त कोई सियासी पार्टी नहीं, हमारी जनता है: मुख्तार
मायावती के टिकट न देने के फैसले के बाद मुख्तार अंसारी के ट्विटर हैंडल से बसपा सुप्रीमो पर हमला बोला गया है। पहले ट्वीट में कहा गया कि जनता ने कुल पांच बार विधायक बनाया। दो बार निर्दल उम्मीदवार के रूप में आने पर भी विधायक चुना। जेल में रह कर भी भारी मतों से विजयी बनाया। हमारी ताक़त कोई सियासी पार्टी नहीं, हमारी जनता है, जो हमारी है और हम जनता के हैं। इसके बाद उनके एक अन्य ट्वीट में लिखा, हमें गर्व इस बात का भी है कि हम कभी केवल किसी एक जाति, किसी एक धर्म का वोट पाकर नहीं जीते, बल्कि जनता की मुहब्बतों ने बीच में आने वाली जाति और धर्म की दीवारों को तोड़कर हमें वोट देते आयी है, क्योंकि हमारा और जनता का रिश्ता प्रेम, भाईचारा और सौहार्द का है।
अगले ट्वीट में मुख्तार ने लिखा, हमारी ताक़त हमेशा से आम जनता, समाज का शोषित, वंचित तबका रहा है। हमने जेल में रहने के दौरान भी अपनों का साथ कभी नही छोड़ा, ना उन्हें तनहा महसूस होने दिया। यही वजह है की जनता हमें लगातार अपना नेतृत्व सौंपती आयी है। किसी सत्ताधारी दल के विधायक और हमारे कार्यों को माप कर देखियेगा।
आपको बता दें कि मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते 2007, 2012 और 2017 का चुनाव जीता है। वहीं जेल से बाहर रहकर भी उसने 1996 और 2002 का चुनाव अपने नाम किया था।
मुख्तार अंसारी के बसपा में शामिल होने पर जब पत्रकारों ने मायावती से ये सवाल पूछा कि क्या मुख्तार भले आदमी हैं और दागियों को अपनी पार्टी में क्यों शामिल किया? जिस पर मायावती ने कहा था कि आप किस आधार पर ये बात कह सकते हैं मुख्तार अंसारी माफिया हैं या बाहुबली हैं। मुख्तार अंसारी का नाम भाजपा विधायक कृष्णानन्द राय हत्याकांड मामले में आया था, जिसकी सीबीआई जांच हो रही है। इस मामले में सीबीआई के पास उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं है।
मायावती ने यह भी कहा था कि मुख्तार की छवि खराब करने की कोशिश की गई है। कुछ लोग गलत संगति में गलत रास्ते पर निकल जाते हैं और बिगड़ जाते हैं। और हमारी पार्टी उनको सुधरने का मौका जरूर देती है। कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने साल 2017 में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कौमी एकता दल का बसपा में बिना शर्त विलय कर लिया था। मायावती ने कहा था कि अंसारी परिवार के खिलाफ किसी के पास कोई सुबूत नहीं है, इसीलिए उनकी पार्टी का बसपा में विलय किया गया है। इतना ही नहीं उन्होंने मऊ से मौजूदा विधायक मुख्तार अंसारी को इसी सीट से, मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को घोसी सीट से तथा उनके भाई सिबगतउल्ला अंसारी को मुहम्मदाबाद यूसुफपुर सीट से टिकट भी दिया था।
आज एक बार फिर बसपा 2007 के फॉर्मूले पर चल पड़ी है। बसपा का अगामी यूपी विधानसभा चुनाव में प्रयास होगा कि किसी भी बाहुबली व माफिया आदि को पार्टी से चुनाव न लड़ाया जाए। इसी के चलते आजमगढ़ मण्डल की मऊ विधानसभा सीट से अब मुख्तार अंसारी का नहीं बल्कि यूपी के बीएसपी स्टेट अध्यक्ष भीम राजभर के नाम को फाइनल किया गया है।
मायावती ने अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की बात करते हुए कहा कि जनता की कसौटी और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के प्रयासों के तहत ही लिए गए इस निर्णय के फलस्वरूप पार्टी प्रभारियों से अपील है कि वे पार्टी उम्मीदवारों का चयन करते समय इस बात का खास ध्यान रखें ताकि सरकार बनने पर ऐसे तत्वों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने में कोई भी दिक्कत न हो। मायावती ने अपने कार्यकाल की तारीफ करते हुए आने वाले विधानसभा में जीत की बात भी कही।
उन्होंने कहा, बीएसपी का संकल्प ‘कानून द्वारा कानून का राज’ के साथ ही यूपी की तस्वीर को भी अब बदल देने का है ताकि प्रदेश व देश ही नहीं बल्कि बच्चा-बच्चा कहे कि सरकार हो तो बहनजी की ‘सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय’ जैसी और बीएसपी जो कहती है वह करके भी दिखाती है यही पार्टी की सही पहचान भी है। वह अलग बात है कि बसपा साल 2017 के चुनावों में कुछ खास हासिल नहीं कर पाई थी। उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीट हैं, मायावती की पार्टी बसपा पिछले चुनाव में सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। वहीं आधे से ज्यादा विधायकों को मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इस बार बसपा दलित ब्राम्हणों को साथ लेकर फिर से 2007 की तरह यूपी में सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। इसको लेकर बकायदा हर जिलों में ब्राम्हण सम्मेलन कराए जा रहे हैं। अयोध्या से सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है। अब देखना यह है कि आगामी विधानसभा में बसपा कितनी सफलता मिल पाएगी।
- सुयश मिश्रा