जी के चक्रवर्ती
आज जो स्थिति अफगानिस्तान में तालिबान की है उस पर पल पल पैनी निगाह बनाये रखने की आवश्यकता है क्योंकि तालिबान जैसे जैसे अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने की ओर अग्रसर होता जा रहा है वैसे वैसे वह अपने द्वारा किये गए सभी वादों के विपरीत कार्य करता नजर आने लगा है, जैसा कि आज से एक सप्ताह पहले कश्मीर पर दिए गए उसके एक बयान के ठीक विपरीत बातें करते हुए उंसने कहा कि वह भारत के कश्मीरी लोगों की आवाज बनेगा।


आज तालिबान जिस तरह खुद को उदार और अपना सुधरा रूप दिखाने का प्रयास करते हुये यह प्रकट कर रहा है कि उसका अलकायदा, लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन उसके इस बयान पर विश्व समुदाय और खासतौर से भारत तो कभी भी विश्वास कर ही नही सकता।
हाँ मौजूदा समय मे कश्मीर को लेकर तालिबान का जो दृष्टिकोण सामने आया है वह निश्चित रूप से भारत के लिए अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है। अभी अभी जिस तरह तालिबान ने दो टूक शब्दों में कतर की राजधानी दोहा स्थित राजनीतिक मुख्यालय से तालिबान प्रवक्ता द्वारा यह कहा गया है कि कश्मीर सहित दुनिया के सभी मुसलमानों के लिए आवाज उठाना उसका कर्तव्य और अधिकार दोनों है, इसलिए इस बात को विशेषतः भारत को हल्के में लेना नहीं लेना चाहिए।
मौजूदा समय में अभी अफगानिस्तान में सरकार बन भी नहीं पायी है, लेकिन तालिबान की कश्मीर मुद्दे पर ऐसा बयान भारत के प्रति उसके भविष्य की सोच को स्पष्ट करता है और अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद जाहिर सी बात है कि वह कश्मीर में पाकिस्तानी मंसूबे को अंजाम देने के लिये वह पाकिस्तानी द्वारा दिये गए मार्गनिर्देशन पर चलेगा इसलिये आने वाले दिनों में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक मे यदि आवाजें सुनाई पड़े तो इसमे कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
जहां तक कश्मीर के विषय मे पूरे विश्व को यह बात पता है कि यह भारत का एक अभिन्न हिस्सा है। फिर भी दो-चार देश अगर कश्मीर का राग अलापते रहें तो इससे भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला नही है।
कश्मीर पर तालिबान का बयान ऐसे समय आया जब इसी सप्ताह भारत द्वारा तालिबान से बातचीत शुरू की गई है। भारत यह कैसे भूल सकता है कि कंधार विमान अपहरण कांड जैसी घटनाओं को तालिबान शासन के दौरान ही अंजाम दिया गया था और उस समय भी तालिबान पाकिस्तान के ही इशारे पर ही चल रहा था। हालांकि उस समय तालिबान भारत से नाराज इसलिए था कि भारत ने आफगानिस्तान में उसकी सरकार को मान्यता नहीं दिया था। ऐसे में मैजूदा समय मे भी भारत उसे मान्यता तो नही देने वाली है ऐसे में तालिबान की रणनीति पाकिस्तान के प्रभाव से मुक्त नही होगी।









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