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    Home»इंडिया

    महामना के राष्ट्रीय चिंतन की प्रेरणा

    ShagunBy ShagunDecember 31, 2021Updated:December 31, 2021 इंडिया No Comments7 Mins Read
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    डॉ दिलीप अग्निहोत्री

    इस समय देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसमें स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के स्मरण किया जा रहा है। नई पीढ़ी को अनेक अनछुए प्रसंगों से अवगत कराया जा रहा है। अमृत महोत्सव यहीं तक सीमित नहीं है। इसमें आत्मनिर्भर भारत अभियान और सांस्कृतिक स्वाभिमान की चेतना भी शामिल है। वर्तमान सरकार इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही है। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भी देश की अर्थव्यवस्था व सांस्कृतिक गौरव पर विचार चल रहा था। महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन चलाया था। इसमें भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का मंसूबा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आत्मनिर्भर भारत अभियान का शुभारंभ किया था। अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत अभियान उल्लेखनीय रूप से आगे बढ़ रहा है। इसी प्रकार स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक सेनानियों ने संस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख जगाई थी। इनका मानना था कि भारत कभी विश्वगुरु था। सांस्कृतिक रूप में बहुत समृद्ध था। किंतु राष्ट्रीय स्वाभिमान का विचार कमजोर पड़ने से देश कमजोर हुआ। इसका लाभ विदेशी आक्रांताओं ने उठाया। इसलिए स्वतन्त्रता के साथ ही सांस्कृतिक स्वाभिमान को जागृत करना भी अपरिहार्य है।

    महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस में विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। उसके नाम में हिन्दू शब्द को जोड़ा। यह साम्प्रदायिक विचार नहीं था। बल्कि इसके माध्यम से ब्रिटिश सभ्यता शिक्षा की चुनौती के मुकाबले का जज्बा था। महात्मा गांधी उस दौरान काशी आये थे। उन्होने काशी विश्वनाथ मंदिर की गलियों में गंदगी व अव्यवस्था को देख कर व्यथित हुए थे। वर्तमान सरकार ने सांस्कृतिक स्वभिमान के अनुरूप भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण किया। उसका लोकर्पण किया गया। अयोध्या में पांच सदियों की प्रतीक्षा के बाद भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा है। प्रयागराज कुंभ में अनेक विश्व स्तरीय कीर्तिमान स्थापित हुए। विंध्याचल में भव्य कॉरिडोर का निर्माण प्रगति पर है। स्पष्ट है कि मोदी व योगी सरकार महामना व उनके जैसे अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की प्रेरणा से कार्य कर रही है।

    भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय का राष्ट्रीय चिंतन व्यापक था। वह देश की स्वतन्त्र कराने के साथ ही शक्तिशाली भारत का निर्माण चाहते थे। उनका जीवन इन्हीं विचारों के प्रति समर्पित रहा। वह उन महापुरुषों में शामिल थे जो भारत की परतंत्रता के मूल कारण पर गहन विचार करते थे। भारत कभी विश्वगुरु था। लोग यहां ज्ञान प्राप्त करने आते थे। लेकिन ऐसा भी समय आया जब विदेशी आक्रांताओं ने यहां अपना शासन स्थापित किया। राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना कमजोर पड़ने से देश कमजोर हुआ था। यह बात उन्हें उद्देलित करती थी। वह कांग्रेस में रहकर देश को स्वतन्त्र करने के लिए संघर्ष चला रहे थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के माध्यम से वह राष्ट्रीय चेतना का संचार करना चाहते थे। मालवीय जी व्यक्ति का समग्र विकास चाहते थे। इसीलिए वे शिक्षा के साथ साथ स्वास्थ्य को भी आवश्यक मानते थे। वे सभी विद्यार्थियों को इसके लिए प्रेरित करते थे। मालवीय जी का प्रताप था कि बीएचयू के चार लोगों को भारत रत्न मिला। नरेंद्र मोदी सरकार ने महामना को भारत रत्न दिया।

    डा.भगवान दास, डा.राधाकृष्णन, प्रो.सी.एन.राव को भी भारत रत्न मिला था। महामना होने के भाव उनके आचरण से परिलक्षित था। छोटे मन का व्यक्ति कभी आध्यात्मिक नहीं हो सकता। महामना ही उदार होता है। महामना भारत में प्राचीन चिंतन और आधुनिक विज्ञान के बीच समन्वय चाहते थे। मालवीय जी ने बाई इंडियन का नारा दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस भावना से प्रेरित होकर मेक इन इंडिया अभियान चला रहे हैं।

    उन्नीसवीं शताब्दी के छठे दशक में महात्मा गांधी स्वामी विवेकानन्द और महामना मालवीय जी इन तीनों का प्रादुर्भाव हुआ। तीनों ने विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई। भारत की आध्यात्मिक शक्ति को जगाया। महामना राजनीतिक विविधता के बावजूद सबके लिए सम्मानित थे। उनमें दूरदृष्टि लोक जागरण की ऊर्जा संपादक जैसे अनेक गुण थे। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। राजनीतिक विचार के बावजूद उनका आधार आध्यात्मिक था। सामाजिक समरसता के लिए वे समर्पित थे। परतंत्रता के समय ही भारतीय जनमानस में गांधी जी को महात्मा, तिलक को लोकमान्य, मालवीय जी को महामना की उपाधि मिल चुकी थी। महामना को भारतरत्न देकर मोदी सरकार ने साबित किया कि वह रत्नों की पारखी है। मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को प्रयागराज में हुआ था। इनके पिता पं ब्रजनाथ व माता का नाम मूनादेवी था। यह परिवार मूलतः मालवा के थे। वहां से वह प्रयागराज आकर बस गए थे। पं ब्रजनाथ श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर परिवार का भरण पोषण किया करते थे। वह आध्यात्मिक ग्रन्थों व संस्कृत के विद्वान थे। मदन मोहन मालवीय ने बचपन से परिवार में धार्मिक माहौल देखा।

    उनकी भी संस्कृत व धर्म ग्रन्थों में रुचि थी। इसको देखते हुए उनके पिता ने उन्हें पं.हरदेव जी की पाठशाला में प्रवेश दिला दिया। उनकी प्राइमरी परीक्षा यहीं पूरी हुई। इसके बाद उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह होनहार थे। उन्हें छात्रवृत्ति मिलने लगी। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया। लेकिन इसके बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वह संस्कृत में स्नातकोत्तर नहीं कर सके। कॉंग्रेस की स्थापना के बाद दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में हुआ था। मदन मोहन मालवीय इसमें शामिल हुए। यहां से उनका सार्वजनिक प्रारंभ हुआ। उन्होंने विधि स्नातक किया। इलाहाबाद में वकालत प्रारंभ की। मदन मोहन मालवीय 1909 और 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1916 के लखनऊ समझौते के तहत मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडलों का विरोध किया। इसके पहले वह इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बने थे।

    इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के रूप में परिवर्तित किया गया था। मदन मोहन मालवीय 1926 तक इसके सदस्य बने रहे। असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया। किंतु कॉंग्रेस के खिलाफत आंदोलन का उन्होंने विरोध किया। साइमन कमीशन के विरोध में उन्होंने मोर्चा लिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया। 1932 में सरोजनी नायडू के बाद वह दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। इसके अगले वर्ष कलकत्ता अधिवेशन में वह पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष बने। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान चार बार कॉंग्रेस अध्यक्ष बनने वाले वह एकमात्र नेता थे। कम्युनल अवार्ड के विरोध में उन्होंने कॉंग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रवादी पार्टी बनाई थी। इस पार्टी ने केंद्रीय विधायिका के चुनाव में बारह सीटें जीतीं थी। गत दिवस ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद की चतुर्थ बैठक को संबोधित किया। उन्होंने ब्रज तीर्थ क्षेत्र के विकास कार्यों की प्रगति की विस्तार से समीक्षा की।

    यहां संचालित अनेक परियोजनाओं पर चर्चा की गयी। मथुरा स्थित वृन्दावन में जयपुर मंदिर के सामने परिषद द्वारा निर्मित अन्नपूर्णा भवन के संचालन के सम्बन्ध में भी विचार किया गया।

    मुख्यमंत्री के समक्ष परिषद द्वारा आगामी वर्ष के दौरान तैयार की गई परियोजनाओं की जानकारी प्रस्तुत की गयी। इनमें मथुरा परिक्रमा मार्ग का विकास कार्य,जनपद मथुरा में तीन वन परिक्रमा मार्ग का विकास कार्य,गोवर्धन में पर्यटक जन सुविधा केन्द्र का निर्माण कार्य, राधाकुण्ड में पर्यटक जन सुविधा केन्द्र का निर्माण कार्य तथा बल्देव में पर्यटक जन सुविधा केन्द्र,बरसाना में पर्यटक जन सुविधा केन्द्र का निर्माण कार्य,नंदगांव में पर्यटक जन सुविधा केन्द्र का निर्माण कार्य,चौरासी कोसीय परिक्रमा मार्ग में पड़ाव स्थलों का विकास कार्य,कुण्डों का रख रखाव का कार्य, वृन्दावन परिक्रमा मार्ग को सुगम बनाने हेतु लेपन कार्य,गोवर्धन परिक्रमा मार्ग को सुगम बनाने हेतु लेपन कार्य, यमुना जी के विश्राम घाट से स्वामी घाट कंस किला तक यमुना रिवर फ्रण्ट का विकास कार्य, स्वामी घाट से दुर्वासा ऋषि मंदिर तक सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण कार्य,विश्राम घाट पर हर की पैड़ी की तरह कृष्णा पैड़ी का विकास तथा श्री द्वारिकाधीश मंदिर के पीछे बजरिया वाली सड़क एवं पाठक गली की सीढ़ियों का पुनरोद्धार कार्य शामिल हैं।

    गोकुल परिक्रमा का विकास कार्य,नगर पंचायत कार्यालय बल्देव रोड के पास कैमारावन तालाब की बाउण्ड्रीवॉल व सीढ़ियों,लाइट एवं बेंच की स्थापना का कार्य,गणेश बाग में बाउण्ड्रीवॉल, मिट्टी भराव व इण्टरलॉकिंग, लाइट,बैठने हेतु बरामदा एवं यात्री बेंच की स्थापना का कार्य,ब्रज चौरासी कोसीय परिक्रमा के लिए तीन गेट का निर्माण कार्य, सौंख में स्टेट आर्किओलॉजी के टीले की बाउण्ड्रीवॉल व विकास कार्य,नौहझील जल संचय क्षेत्र का विकास कार्य तथा वृन्दावन धोबी घाट के पास वॉटर बॉडी का विकास कार्य भी शामिल हैं। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि तीर्थ स्थलों को स्वच्छ,सुन्दर एवं आकर्षक ढंग से विकसित करने के लिए सभी विभाग अन्तर्विभागीय समन्वय के साथ कार्य करें। तीर्थ स्थलों पर संचालित कार्यों को समय-सीमा के अन्तर्गत पूर्ण करने के लिए पूरी तत्परता के साथ कार्य किया जाए।

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