पौराणिक मान्यता के अनुसार के भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्णपक्ष की अष्ठमी को मध्यरात्रि में अभिजीत नक्षत्र में हुआ था, उस रात में भयानक तेज बारिश हो रही थी।
कंस के अत्याचार से लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे तब भगवान विष्णु ने देवकी के आठवे गर्भ के रूप में जन्म लिया। जन्म के तुरंत पहले जेल के सारे प्रहरी अचानक से बेहोश हो गए थे तब कारावास में भगवान विष्णु ने देवकी और वासुदेव को दर्शन दिए और उन्हें अपने भर्ती पर आने का कारण बताया।
भगवान ने वासुदेव और देवकी से कहा कि वह मेरे बाल रूप को नन्द जी के यंहा ले जाए और वंहा से उनकी पुत्री योगमाया को यहाँ ले आये, पर वासुदेव जी ने कहा प्रभु मैंने को कंस को वचन दिया है कि मै देवकी की हर संतान को कंस को सौंप दूंगा, भगवान ने कहा कि जैसा मै कहता हूं वैसा करिये।
उन्होंने बालरूपी कृष्ण को टोकरी में रखा और नन्द के गांव चल दिए वह जैसे जैसे आगे बढ़े, कारावास के प्रत्येक द्वार एक एक करके खुलते चले गए, वासुदेव चले गोकुलधाम की तरफ भड़ते चले गए। लेकिन गोकुल पहुँचने से पहले उन्हें यमुना नदी पार करनी थी यमुना पर बारिश की वजह से थी उफान पर थी, लेकिन वासुदेव जरा भी नहीं घबराये और और उफनती नदी में टोकरी में कृष्ण को लिए पानी में उतर गए भयानक बारिश का रौद्र रूप जारी था भगवान कृष्ण के ऊपर भी बारिश कि बुँदे लगातार गिर रही थी अचानक शेषनाग ने प्रकट होकर कृष्ण के ऊपर एक विशेष प्रकार की छतरी का काम किया और बारिश से बचाव के रूप में सुरक्षा कवच का काम किया।
वासुदेव जी चलते रहे यमुना का पानी वासुदेव के गले तक जा पंहुचा, धीरे धीरे पानी उनके सिर से ऊपर से होता हुआ, टोकरी से लटक रहे भगवान के पांव तक जा पंहुचा, मनो वह पानी कृष्ण ने पैर छूना चाह रहा हो, लेकिन पानी ने जैसे ही भगवान के पैर छुए वह पानी अचानक से घटता चला गया। इस प्रकार पानी का स्तर कम होते ही वासुदेव नन्द के गांव तक पहुंच गए, वहां पहुंच कर उन्होंने कृष्ण को यशोदा के बगल में लिटा दिया और योगमाया को लेकर वापस कारावास में आ गए, इसके पश्चात कारावास में स्थिति पुनः सामान्य हो गयी जेल में ताले वैसे ही पड़ गए देवकी और वासुदेव के पैर में बेड़ियाँ वैसे ही पड़ गयी जैसे पहले लगी थी, इसके बाद पहरेदारों को होश आया तो पता चला देवकी ने एक बच्ची को जन्म दिया है। यह सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और चल पड़ा सैनिको के साथ कारावास में, वहां आकर उसने भयानक अट्टहास करते हुए देवकी से बच्ची को माँगा। देवकी और वासुदेव के हज़ार मिन्नते करने के बाद भी उसने बच्ची को उनसे छीन लिया और उठाकर जैसे ही कारावास की दीवार पर पटका!
वह योगमाया बच्ची एक प्रकाश के रूप में प्रकट हुयी और कंस पर जोर जोर से हसने लगी और बोली- अत्याचारी कंस तेरा काल तो आ चुका है। इतना कह कर वह गायब हो गयी। इधर नन्द के गांव में कृष्ण के आने की खुशियां मनाई जा रही थी। बोलो जय श्री कृष्ण!