आरक्षण तरक्की का नहीं, सामाजिक रूप से हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने का साधन
लखनऊ 21 अगस्त: बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के एससी/एसटी और ओबीसी छात्रों ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन प्रो. विक्टर बाबू को सौंपा। उन्होंने अवगत कराया कि डा.भीमराव आंबेडकर के अनुसूचित जातियो व अनुसूचित जन जातियों को प्रदत्त संवैधानिक अधिकार आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियो में क्रीमिलेयर व जातीय उपवर्गीकरण कर आरक्षण व्यवस्था करने का बीते एक अगस्त को फैसला दिया है।यह भारतीय संविधान की मूल भावना व भारतीय संविधान के अनुच्छेद के विरूद्ध है। जिसके विरोध में भारत बंद जैसे आंदोलन की ओर अग्रसर है। ऐसे में सुप्रीम फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए भारत सरकार की संसद का एक विशेष अधिवेशन बुलाकर आरक्षण पूर्व की भांति रखे जाने और संविधान की नौवी सूची में शामिल कराने का आदेश पारित किया जाए।
छात्रों ने कहा कि हाल ही 01 अगस्त 2024 को आए माननीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे यानी आरक्षण में भी कोटा से बहुत चिंतित और दुःखी है।अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है।अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है। सैकड़ों वर्षों से छुआछूत के भेद का शिकार हुईं एससी/एसटी को एक समूह ही माना जाना चाहिए। ऐसे निर्णय आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है।
छात्रों ने कहा कि हम सभी एससी/एसटी और ओबीसी माँग करते है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति लिए ‘न्याय और समानता’,आरक्षण पर संसद का नया अधिनियम, केंद्र सरकार की नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जाति आधारित डेटा जारी करने,उच्च न्यायपालिका में एससी/एसटी वर्गों के लिए 50% प्रतिनिधित्व का लक्ष्य और केंद्र/राज्य सरकार की नौकरियों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में बैकलॉग रिक्तियों को भरा जाना चाहिए।