20 करोड़ साल पुराना शिकारी: इक्थियोटाइटन का जीवाश्म उजागर करता है त्रैसिक काल के समुद्रों का रहस्य
नई दिल्ली। दो सौ करोड़ वर्ष पहले महासागरों में तैरने वाला एक विशालकाय शिकारी, जिसे वैज्ञानिक इक्थियोटाइटन सेवेरेन्सिस के नाम से जानते हैं, अपने समय का सबसे खतरनाक और शक्तिशाली परभक्षी था। यह प्राचीन समुद्री सरीसृप, जिसकी लंबाई लगभग 80 फीट थी, अब तक खोजा गया सबसे बड़ा इक्थियोसॉर माना जा रहा है। ब्रिटेन में मिले इसके जबड़े के जीवाश्मों ने वैज्ञानिकों को त्रैसिक काल (लगभग 25 करोड़ साल पहले) की समुद्री दुनिया का एक नया और रोमांचक दृष्टिकोण प्रदान किया है। यह खोज न केवल उस युग के समुद्री जीवन की जटिलता और विशालता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि उस समय के महासागर आज की तुलना में कहीं अधिक विविध और जीवन से भरे हुए थे।
अपने समय के सबसे तेज थे शिकारी
इक्थियोसॉर, समुद्र में रहने वाले प्राचीन सरीसृप, त्रैसिक काल से लेकर क्रेटासियस काल (लगभग 9 करोड़ साल पहले) तक समुद्रों में विचरण करते थे। ये जीव अपनी गति, ताकत और शिकारी क्षमताओं के लिए जाने जाते थे, और इक्थियोटाइटन सेवेरेन्सिस इनमें सबसे विशाल और प्रभावशाली था। नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, लंदन के अनुसार, इस जीवाश्म की खोज का सफर 2018 में शुरू हुआ, जब जीवाश्म वैज्ञानिक डॉ. डीन लोमैक्स और उनकी टीम को ब्रिटेन के समुद्र तट पर इसके जबड़े की हड्डी का एक टुकड़ा मिला।
इस हड्डी को शुरुआत में डायनासोर की हड्डी समझ लिया गया था, लेकिन गहन विश्लेषण के बाद इसे इक्थियोसॉर प्रजाति का हिस्सा पाया गया। 2020 में, सोमरसेट की तटरेखा पर जीवाश्म खोजियों रूबी और जस्टिन रेनॉल्ड्स ने जबड़े का एक और टुकड़ा खोजा, जो पहले टुकड़े से कहीं बेहतर संरक्षित था। इस दूसरी खोज ने वैज्ञानिकों को और अधिक जानकारी दी, और दोनों जीवाश्मों के अध्ययन के बाद इन्हें एक ही प्रजाति, इक्थियोटाइटन सेवेरेन्सिस, का हिस्सा माना गया।
2024 में इस प्रजाति को आधिकारिक तौर पर यह नाम दिया गया। जबड़े की लंबाई छह फीट से अधिक थी, जिसके आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि इस जीव की कुल लंबाई 80 फीट तक रही होगी। यह आकार इसे आज की फिन व्हेल (लगभग 85 फीट) के बराबर और ऑर्का व्हेल (लगभग 30 फीट) से कहीं अधिक विशाल बनाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इक्थियोटाइटन अपने समय का शीर्ष परभक्षी था, जो समुद्री खाद्य श्रृंखला के शिखर पर था। यह जीव तेजी से तैरने और बड़े समुद्री जीवों का शिकार करने में सक्षम था। इसकी खोज ने यह साबित कर दिया कि त्रैसिक काल में समुद्र केवल छोटे जीवों का निवास स्थान नहीं थे, बल्कि इनमें ऐसे महाकाय शिकारी भी मौजूद थे जो अपने समय के सबसे प्रभावशाली प्राणी थे। इस जीवाश्म की खोज ने वैज्ञानिकों को उस समय के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर ढंग से समझने में मदद की है।
इक्थियोटाइटन की विशालता और इसकी शिकारी क्षमताओं ने वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि त्रैसिक काल के समुद्र कितने जीवंत और जटिल थे। इस जीव के जीवाश्म न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये उस समय के जीवन की विविधता और विशालता को भी दर्शाते हैं। यह खोज यह भी दिखाती है कि धरती के हर कालखंड में जीवन ने नए और आश्चर्यजनक रूप लिए हैं। हालांकि, इक्थियोटाइटन जैसे महाकाय शिकारी ज्यादा समय तक अस्तित्व में नहीं रह सके। लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले त्रैसिक काल के अंत में एक महाविनाशकारी घटना, जिसमें बड़े पैमाने पर ज्वालामुखीय विस्फोट हुए, ने समुद्रों की रासायनिक संरचना और जलवायु को बदल दिया। इसने समुद्री खाद्य श्रृंखला को गहरे रूप से प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप इक्थियोटाइटन जैसे विशाल शिकारी विलुप्त हो गए। हालांकि, इक्थियोसॉर की कई अन्य प्रजातियां इस आपदा से बच गईं और बाद के कालखंडों में विकसित होती रहीं।
इस खोज ने न केवल वैज्ञानिक समुदाय में उत्साह पैदा किया है, बल्कि आम लोगों में भी प्राचीन समुद्री जीवों के प्रति रुचि बढ़ाई है। नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, लंदन में इस जीवाश्म को प्रदर्शित करने की योजना बनाई जा रही है, ताकि लोग इस विशालकाय शिकारी के बारे में अधिक जान सकें। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की खोजें हमें धरती के इतिहास को समझने में मदद करती हैं और यह दर्शाती हैं कि जीवन कैसे बदलते पर्यावरण में ढलता और विकसित होता है। यह जीवाश्म न केवल उस समय के समुद्री जीवन की कहानी कहता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि धरती का इतिहास अनगिनत आश्चर्यों से भरा हुआ है।
इक्थियोटाइटन जैसे जीवों की खोज हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आज के महासागरों में भी कई रहस्य छिपे हो सकते हैं, जो भविष्य में उजागर होंगे। इस खोज ने एक बार फिर साबित किया है कि विज्ञान और अन्वेषण हमें हर बार नए आश्चर्यों से रूबरू कराते हैं।