आनंद अभिषेक
हृदय शुष्क हो गया
नहीं हैं प्रेमिल संवेदनाएं
अब नहीं बांधता मुझे मौसम
यानी कविता-धर्म के लिए
जो कुछ भी जरूरी है,
वह गया है चुक
मगर न जाने किन कोने- अंतरे से
निकल ही आतीं हैं कविताएं
भूखी.. प्यासी.. नंगी..भोदरी- सी
नहीं अच्छी लगतीं हैं यह कविताएं
बदसूरत.. बदमिज़ाज..
.. सच, नहीं लिखता अब कविताएं
बल्कि कविताएं लिखने लगीं हैं मुझे
इसलिए हो गयीं हैं कविताएं
बदसूरत और बदमिज़ाज
जैसा कि हूं अब मैं