मैं ,सहज स्वप्न में ,खोती हूं
चाहे जगती हूं ,या सोती हूं
किस उधेड़ बुन में हूं, ना जाने
क्यों अश्रु,बिना मैं रोती हूं
प्रिय, पिय, बोलो कब आओगे
है सावन झूठा,भादो रूठा
बासंती, ऋतु भी,रूठी सी
धूप से कड़कती,दोपहरी
बगिया ,तुलसी भी झुलसी सी,
प्रिय, पिय,बोलो कब आओगे
मैं कभी न तुमसे दूर सजन
पाओगे मुझे, झांको तो मन
पिय बिन हूं, कैसी दुल्हन
खोजा करते, तुझे नयन
प्रिय, पिय ,बोलो कब आओगे
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र