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    Home»इंडिया

    नई शिक्षा नीति में छा़त्र अपनी रूचियों एवं क्षमता के अनुसार चुन सकते है पाठ्यक्रम

    ShagunBy ShagunSeptember 2, 2024 इंडिया No Comments5 Mins Read
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    भारत की मेघा शक्ति का विदेशी भी मानते हैं लोहा

    लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सांसद डा0 दिनेश शर्मा ने कहा कि आज देश तेजी से आगे बढ़ रहा है तथा कुछ लोगों की मानसिकता और कार्यप्रणाली विशेषकर युवाओं की कार्य प्रणाली में परिवर्तन आया है।

    उन्होने कहा कि यद्यपि एक शिक्षा नीति 1986 में बनी थी उसके बाद शायद एक आध बार उसमें परिवर्तन किया गया हो, किंतु उसके बाद भी खास परिवर्तन इसलिए देखने को नहीं मिला कि उसमें अंग्रेजों की शिक्षा की छाया पड़ रही थी। शिक्षा डिग्री धारण करने का न केवल साधन बनी बल्कि बेरोजगारी तेजी से बढ़ने लगी। प्रधानमंत्री ने तो 2047 के विकसित भारत की कल्पना की और उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की सोंच से आगे बढ़कर देश के बारे मे परिकल्पना की क्योंकि कलाम साहब का कहना था कि बड़े सपने देखने से आगे बढ़ने का रास्ता खुलता है।

    उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय, शिक्षा नीति को लागू करने का उद्देश्य न केवल शिक्षा को ग्रहण करने की क्षमता को बढाना है बल्कि छा़त्रों में सामर्थ्य। सृजनात्मकता और निपुणता का विकास करना भी है। नई शिक्षा नीति को और अािधक लचीला और अनुकूलित बना दिया गया है जहां छा़त्र अपनी रूचियों एवं क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रम चुन सकते है।। इसके साथ ही भाषा और संस्कृति का संरक्षण भी इस योजना का महत्वपूर्ण पहलू है । यह शिक्षा नीति न केवल ज्ञान के आधार को मजबूत करती है बल्कि राष्ट्रीय, एवं चरित्र मूल्यों को सहेजने का भी कार्य करती है। स्वावलम्बन और आत्म निर्भरता जैसे सिद्धान्त देश की विकास या़त्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । आत्म निर्भर भारत बनाने में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है इसीलिये किसी न किसी प्रकार से नई शिक्षा नीति में इसे शामिल किया गया है।,

    उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अभियान से लेकर स्टार्टअप इण्डिया, स्किल इण्डिया जैसे कार्यक्रम जब प्रारंभ कराए तो बहुतों की समझ में प्रधानमंत्री की प्रगतिवादी सोंच समझ में नही आई किंतु यदि उनके स्वच्छता अभियान को ही लिया जाय तो इसने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई और दवाइयों की गई व्यवस्था को भी यदि इसमें जोड़ दिया जाय तो इसने लोगों को निरोग रखने की दिशा में अच्छा कार्य किया। उन्होंने कहा कि करोना के बाद भी तमाम प्रकार की विश्व की आर्थिक परिस्थिति विपरीत होने के बावजूद भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है।उन्होंने प्रश्न किया कि मुद्रा स्फीति के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर क्यों है क्योंकि भारत की महिलाओं में बचत की भावना बहुत अधिक है।

    उन्होंने एक विदेशी के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की मारवाड़ी और गुजरात की महिलाओं की जीवनशैली को सभी को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे बच्चों में संस्कार पैदा करती हैं तो उनमें विकृतियां नही आती।यह एक आदर्श मॉडल है। चूल्हा प्रणाली पारिवारिक एकता बढ़ाती है। उनका कहना था कि भारत का यह सिस्टम परिवार को जोड़ता है। विदेशों में बाजार की संस्कृति है जो पारिवारिक विकृतता को जन्म देती है जब कि यहां की लम्बे समय से चली आ रही संस्कृति परिवारिक एकता बढ़ाती है।

    उन्होंने कहा कि मोदी की नई शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति के उदात्त आदर्शों का समायोजित करते हुए जो कुछ नया है और विकसित है उसे जोड़ना है। अर्थात भारतीय संस्कूति और आधुनिक शिक्षा की अच्छाइयों में समन्वय स्थापित करना है। नई शिक्षा नीति में इसी पर जोर दिया गया है ।नई शिक्षा नीति में हिन्दी या भारतीय भाषाओं पठन पाठन की व्यवस्था की गई है।कोई देश तभी तरक्की करता है जब वहां पठन पाठन उसी देश की भाषा में होता है जब कि नई शिक्षा नीति आने के पहले अंग्रेजी भाषा को भले महत्व दिया जाता रहा है किंतु उसका वास्तविक लाभ देश को नही मिल पा रहा था।

    सांसद शर्मा ने कहा कि जब मोदी ने डिजिटलाइजेशन पर जोर दिया तो कांग्रेस के एक नेता ने इसकी आलोचना की और कहा कि इसका क्रियान्वयन देहात या गांव में संभव नही है। डा0 शर्मा ने कहा कि करोना काल में जब शिक्षा विभाग का भी भार उनके ऊपर था तो उन्होंने आनलाइन टीचिंग की व्यवस्था को ही न केवल आगे बढ़ाया बल्कि डिजिटल लाइब्रेरी बनवाई जिसमें 78 हजार लेक्चर थे तथा जो इतने प्रभावशाली थे कि ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने उसकी न केवल सराहना की बल्कि भारत से एमओयू में हस्ताक्षर किये।उनका कहना था कि भारत की मेघा शक्ति कम नही है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण है जहां हिन्दुस्तान में जिन शिक्षकों का चयन नही हुआ वे विदेशों में शिक्षा दे रहे हैं। शिक्षा एक ऐसा मूल मंत्र है जो किसी भी देश की दशा और दिशा को परिवर्तित कर सकता है।विश्व में शायद यह पहला उदाहरण है जहां पर प्रधानमंत्री अपने देश के बच्चों को शिक्षा के गुरू मंत्र देता है।उन्होंने कहा कि नकल रोकने के लिए उन्हेांने टेक्नालाजी का सही उपयोग ही नही किया बल्कि शिक्षण समय को बढ़ाने का प्रयास सीबीएर्सइ शिक्षा पाठ्यक्रम को लागू कर शैक्षिक कलेन्डर बनाकर कम समय में परीक्षाएं सम्पन्न कराईं और जो परीक्षाएं ढाई महीने में होती थीं उन्हें एक पखवारे के अन्दर की सम्पन्न कराकर शेष समय को शिक्षणकाल में उपयोग किया। इससे नकल पर अंकुश लगाने में बहुत अधिक मदद मिली।

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