भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण लोगों में फास्ट फूड और जंक फूड के प्रति बढ़ती दीवानगी को कम करने और इसके साइड इफेक्ट से नागरिकों को बचाने के लिए अधिक मात्रा में वसा, चीनी और नमक वाले चटपटे खाद्य पदार्थों पर अधिक कर लगाने का विचार कर रही है। साथ ही ऐसे भोज्य पदार्थों के अंधाधुंध व भ्रामक प्रचार पर अंकुश लगाने की तैयारी है।
गौरतलब है कि प्राधिकरण ने फास्ट फूड के अत्यधिक सेवन से होनेवाले नुकसान व इसपर नियंत्रण के लिए आवश्यक सुझावों हेतु 11 सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। समिति ने फास्ट फूड के सेवन के प्रति लोगों को हतोत्साहित करने के उपाय के रुप में इन खाद्य पदाथोंर् में फैट टैक्स के रूप में अधिक कर लगाने का सुझाव दिया है। समिति का मानना है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जानेवाले खाद्य वस्तुओं पर अधिक उत्पाद कर लगाने से इसके प्रति लोगों का आकर्षण कम होगा तथा लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
फास्ट फूड के अत्यधिक प्रचलन को कम करने तथा दिनोदिन लोगों में गंभीर होती मोटापे की समस्या से निजात दिलाने की दिशा में समिति का प्रस्ताव हितकारी प्रतीत होता है। अगर इन सुझावों को प्राधिकरण लागू करती है तो निश्चित रूप से फास्ट फूड के प्रति लोगों में व्याप्त दीवानगी को कम करने में बहुत हद तक सफलता मिल पाएगी। फास्ट फूड आमतौर पर महंगे होते हैं। अगर उनकी कीमतों में और अधिक बढ़ोतरी होती है तो इसकी प्रबल संभावना है कि कुछ लोग धीरे-धीरे इन आहारों से अपना मोह भंग करेंगे। इसके साथ ही प्रतिदिन इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आएगी।
केरल सरकार ने गत वर्ष देश में सबसे पहले राज्य में ब्रांडेड रेस्तराओं में परोसे जाने वाले बर्गर, पिज्जा और पास्ता जैसे उच्च वसायुक्त भोज्य पदार्थों पर फैट टैक्स के रूप में 14.5 फीसदी का अतिरिक्त भार देने का एलान किया था। किसी राज्य सरकार द्वारा नागरिकों को पश्चिमी देशों के आहारों के साइड इफेक्ट से बचाने के लिए फैट टैक्स के रुप में उठाया गया देश में यह पहला बड़ा कदम था। अब जबकि स्वयं प्राधिकरण ऐसी व्यवस्था लागू करने जा रही हैं, तब उम्मीद है कि इसका दूरगामी परिणाम देश और जनहित में होंगे।
आज जिस प्रकार भारतीयों ने पारंपरिक पौष्टिक भोज्य पदार्थों के स्थान पर पाश्चात्य देशों में प्रचलित फास्ट फूड को अपने प्रतिदिन की आहार सूची का अभिन्न अंग बनाया है, वह चिंता का विषय है। भागदौड़ भरी जिंदगी के नाम पर लोग इन आहारों को खूब पसंद कर रहे हैं। खासकर अपने घर से दूर रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों, नौकरीपेशा लोगों और बच्चों में ऐसे जंक फूड के प्रति लगाव बढ़ा है।
सिगरेट, गुटखा की तरह यह भी एक प्रकार की बुरी लत ही है। फास्ट फूड स्वादिष्ट होते हैं और जल्द तैयार होते हैं, इसलिए यह नाश्ते व भोजन के रूप में हमारी पहली प्राथमिकता बन जाती है। दूसरी तरफ वर्तमान की आधुनिक जीवनशैली में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही भी बढ़ी है। व्यायाम और शारीरिक श्रम से दूर होती आधुनिक पीढ़ी मोटापे को खुलेआम प्रश्रय दे रही है।
गौरतलब है कि प्रतिदिन हम नाश्ते और भोजन के रूप में अधिक कैलोरी का सेवन तो कर रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में शारीरिक श्रम नहीं होने से शरीर में अतिरिक्त वसा का संकेंद्रण हो जाता है, जिससे मोटापे को स्वत: ही आमंत्रण मिल जाता है। यह भी एक तथ्य है कि मोटापा न सिर्फ अपने आप में एक बड़ी बीमारी है, बल्कि दर्जनों बीमारियों के लिए उपजाऊ भूमि भी तैयार करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पृथ्वी का हर छठा व्यक्ति मोटापे की समस्या से जूझ रहा है। यही नहीं मोटापे कीवजह से हर साल करीब 28 लाख लोगों की जान भी चली जाती है।इसमें कोई दो राय नहीं है कि फास्ट फूड अथवा जंक फूड पाश्चात्य देशों की देन है।
मजे की बात यह है कि फास्ट फूड के नुकसान को देखते हुए कुछ यूरोपीय देशों ने इसके प्रचलन को हतोत्साहित करने तथा नागरिकों को मोटापे की समस्या से बचाने के उद्देश्य से अपने यहां फैट टैक्स लागू कर रहे हैं। हालांकि कुछ देशों को इसमें सफलता मिली है, जबकि कुछ देशों में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं किए गए। एक निश्चित सीमा से ज्यादा मात्रा में संतृप्त वसायुक्त खाद्य पदाथोंर् जैसे चीज, मक्खन, तेल, मांस, दूध तथा अन्य भोज्य पदार्थ, जिसमें वसा की मात्रा 2.3 प्रतिशत से ज्यादा हो, पर टैक्स लगाने वाला डेनमार्क दुनिया का पहला देश था। एक सर्वे के बाद वर्ष 2011 में वहां यह टैक्स लागू कर दिया गया। हालांकि वहां यह प्रयोग सफल नहीं हुआ और सवा साल के भीतर 2013 में यह निर्णय वापस ले लिया गया।
कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि वहां के नागरिक इस निर्णय के खिलाफ थे और इसके बाद वे सस्ते जंक फूड का सेवन करने लगे थे। हालांकि पिछले साल आई ब्रिटिश जनरल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डेनमार्क में फैट टैक्स लगाने पर वहां जंक फूड की खपत में 10 से 15 फीसदी की गिरावट आ गई थी। जापान और हंगरी जैसे कुछ देशों ने भी अपने यहां फैट टैक्स लागू किया हुआ है। इसलिए अगर प्राधिकरण फैट टैक्स को अमल में लाती हैं तो हम भारतीयों को भी आगे बढ़कर सहयोग करना चाहिए, क्योंकि इस तरह के कदम का लाभ अंतत: लोगों को ही मिलने वाला है।हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि कुछ दिन पहले ब्रेड और उससे भी पहले मैगी में स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह रसायनों की मौजूदगी की बातें सामने आई थीं।
दरअसल जितने भी फास्ट फूड आज बाजार में नजर आते हैं, उनमें कुछ ऐसे केमिकल प्रयुक्त होते हैं जो सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं। इन आहारों में प्रमुखत: मोनोसोडियम ग्लूटामेट और लेड-सीसा जैसे हानिकारक तत्व शामिल रहते हैं। इसके नियमित सेवन से पेट संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। इससे न सिर्फ बच्चों में असमय मोटापा आता है, बल्कि उनमें तनाव, अवसाद और चिड़चिड़ापन भी घर कर जाता है। इसके बावजूद फास्ट फूड का सेवन लोग बड़े चाव से कर रहे हैं।देखा जाए तो भारतीय घरों और बाजारों में पोषक तत्व वाले आहारों की भरमार है, लेकिन हमारी प्राथमिकता फास्ट फूड ही क्यों है।
हमें याद रखना होगा कि हमारे पिछली पीढि़यों ने बिना किसी फास्ट फूड के सेवन के सौ वर्षों की जिंदगी बड़े आराम से गुजारी है। बदलते खानपान और रहन सहन ने भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 65 वर्ष पर आ पहुंची है। बाजारवाद और उपभोक्तावाद की संस्कृति देश के हित में नहीं है। लेकिन तथाकथित आधुनिकता और हैसियत दिखाने के लिए बच्चे और अभिभावकपश्चिमी देशों के इन जहरीले आहारों को प्राथमिकता दे रहे हैं। जरूरत है चिंतन की!
बीते दिनों उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने सुझाव दिया था कि सिगरेट की तरह पिज्जा आदि फास्ट फूड पर भी स्वास्थ के लिए हानिकारक होने की चेतावनी दी जानी चाहिए। इस सुझाव पर गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि दक्षिण अमेरिकी देश चिली और इक्वाडोर में ऐसे नियम पहले ही लागू किए जा चुके हैं। इन देशों में उपभोक्ताओं को चेतावनी दी जाती है कि फास्ट फूड में चीनी, नमक और फैट की मात्रा अधिक है और इसका अधिक प्रयोग स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शुगर, हृदय रोग, कैंसर और अस्थमा जैसे रोगों के फैलाव में फास्ट फूड का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अगर हम जागरूक हों तो ऐसे रोगों से बचा जा सकता है। इस तरह असमय बीमार पड़ने और तत्पश्चात महंगे इलाज के बोझ से दूर तो रहा ही जा सकता है। ऐसे में अपने आहार सूची में फास्ट फूड के स्थान पर पौष्टिक भोज्य पदार्थों को शामिल करना ही बेहतर है।