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    राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक थे महाराणा प्रताप और राजा छत्रसाल : स्वामी मुरारीदास

    ShagunBy ShagunJune 13, 2021Updated:June 13, 2021 इंडिया No Comments4 Mins Read
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    हुसैनगंज चौराहे पर लगी महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर की गयी पुष्पवर्षा

    लखनऊ, 13 जून 2021: महापुरुष स्मृति समिति के तत्वावधान में नाका हिंडोला विजयनगर स्थित जगत कुटी में भारतीय तिथि के अनुसार महाराणा प्रताप और राजा छत्रसाल जयंती मनाई गई। दोनों महापुरुषों का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को हुआ था। इस दौरान कोविड-19 महामारी के प्रोटोकॉल का विशेष ध्यान रखा गया। जगत कुटी में कार्यक्रम के उपरांत हुसैनगंज चौराहा जाकर महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर समिति के कार्यकर्ताओं ने पुष्पवर्षा भी की। इस दौरान यहां बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा के संयोजक संत मुरारी दास थे।

    उन्होंने कहा कि अप्रतिम वीर महाराणा प्रताप एक समाज के नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए स्वाभिमान, शक्ति, स्वाधीनता और संपन्नता के प्रतीक थे। विक्रम संवत 1597 ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को राजस्थान के उदयपुर राजवंश में मेवाड़ कुंभलगढ़ स्थित किले में जन्मे महाराणा प्रताप को बहादुरी, पराक्रम विरासत में मिली थी।


    मुरारीदास ने कहा कि महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ़-प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल राजा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई वर्षों तक संघर्ष किया। महाराणा ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13वें महाराणा थे। वर्तमान में यह कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजसमंद जिला, राजस्थान स्थित है। इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुण्डली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 500 भील लोगों को साथ लेकर राणा प्रताप ने आमेर सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया। हल्दीघाटी युद्ध में भील सरदार राणा पुंजा जी का योगदान सराहनीय रहा। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया। हल्दीघाटी के युद्ध में और देवर और चप्पली की लड़ाई में प्रताप को सबसे बड़ा राजपूत और उनकी बहादुरी के लिए जाना जाता था। मुगलों के सफल प्रतिरोध के बाद, उन्हें “मेवाड़ी राणा” माना गया। महाराणा का नाम जब-जब लिया जाएगा, तब-तब उस समय के सुप्रसिद्ध उद्योगपति भामाशाह का नाम स्वतः ही उभर आएगा। मुगलों से लड़ाई में भामाशाह ने महाराणा प्रताप को महीनों साथ दिया था।

    समिति के अध्यक्ष व कार्यक्रम के संयोजक भारत सिंह ने बताया कि महापुरुष स्मृति समिति वर्षों से महापुरुषों का जन्मदिवस भारतीय तिथि के अनुसार करती आ रही है। भारत सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से प्रख्यात राजा छत्रसाल का जन्म भी ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को विक्रमी संवत के अनुसार 1706 में विन्ध्य वनों की मोर पहाड़ियों में हुआ था। वर्तमान में यह स्थान बुन्देलखण्ड के टीकमगढ़ जिले के ककर कचनाए गाँव में है। इनकी माताजी का नाम लालकुंवरि था और पिता का नाम था चम्पतराय। चम्पतराय भी बड़े वीर व बहादुर व्यक्ति थे।

    चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में लालकुंवरि भी साथ-साथ रहतीं और अपने पति को उत्साहित करती रहतीं। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। यही युद्ध के प्रभाव उसके जन्म लेने पर जीवन पर असर डालते रहे। माता लालकुंवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियां बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं।

    उन्होंने कहा कि अन्याय के प्रति कड़ा प्रतिकार करना और दुश्मन को धूल चटाने के अधिक किस्से उसने सुने। बाल्यावस्था में छत्रसाल क्षत्रिय धर्म का पालन करता हुआ आतताइयों से मुक्त होकर स्वतंत्र देश में सांस लेना चाहता था। बालक छत्रसाल मामा के यहां रहता हुआ अस्त्र-शस्त्रों का संचालन और युद्ध कला में पारंगत होता रहा। 10 वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल सैनिक बन गए थे।

    16 साल की अवस्था में छत्रसाल को अपने माता-पिता की छत्रछाया से वंचित होना पड़ा। इस अवस्था तक छत्रसाल की जागीर छिन चुकी थी, फिर भी छत्रसाल ने धैर्यपूर्वक और समझदारी से काम लिया। मां के गहने बेचकर छोटी सी सेना खड़ी की। स्वयं अत्यंत चतुराई से युद्ध का संचालन करते और संघर्ष करते हुए अपना भविष्य स्वयं बनाया। छोटे-मोटे राजाओं को परास्त करके अपने आधीन कर क्षेत्र विस्तार करते रहे और धीरे-धीरे सैन्य शक्ति बढ़ाते गए।

    माल्यार्पण और पुष्पवर्षा कार्यक्रम में सुरेश सिंह, रवीन्द्र सिंह कुशवाहा, एडवोकेट पुष्कर सिंह सनी, अजीत सिंह, वीरेंद्र त्रिपाठी, एडवोकेट अनुरक्त सिंह, फोटो पत्रकार सुशील सहाय, डा. विवेक सिंह, अर्पिता सिन्हा, निकहत की उपस्थिति प्रमुख रही।

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