डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारतीय दर्शन में यज्ञ की महिमा प्रमाणित की गई है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया कि भारतीय यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है। इसका अनुकूल प्रभाव व्यक्ति के मन मष्तिष्क के साथ ही प्रकृति व पर्यावरण पर भी पड़ता है। विश्व हिंदू परिषद ने दिल्ली में चतुर्वेद स्वाहाकर महायज्ञ का आयोजन किया। इसमें रामानुजाचार्य चिन्न जीयर स्वामी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व में वैमष्यता व प्रकृति में प्रतिकूलता बढ़ रही है। ऐसे में यज्ञ के माध्यम से धरती, अंबर, अग्नि, जल, वायु,निहारिका व नक्षत्रों का संतुलन बनाया जा सकता है। इससे प्राणियों में सद्भावना का भाव भी जागृत होता है। उन्माद व उत्तेजना का निवारण होता है। यज्ञ के माध्यम से दिव्य वातावरण का निर्माण होता है, जो मनुष्य को सहज और संयमित बनाता हैं। प्रकृति में एकात्मकता व एकरूपता का प्रादुर्भाव होता है।
इसी में सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयः का भाव समाहित है। विश्व हिंदू परिषद प्रबंध समिति के सदस्य दिनेश चन्द्र ने कहा कि वेदों को लेकर अनेक भ्रांतियां फैली हैं। कुछ लोगों ने कहा कि महिलाएं वेद का अध्य्यन व श्रवण नहीं सकतीं। वर्ग के आधार पर भी ऐसा ही गलत प्रचार किया गया। जबकि यजुर्वेद के छब्बीसवें मंडल के दूसरे अध्याय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि वेदों का ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नारी, सेवक कोई भी श्रवण, अध्ययन और पठन कर सकता है। सभी को इसके श्रवण का भी अधिकार है। वेद के बारे में फैले भ्रम इत्यादि दूर करने के लिए ही दिल्ली में ऐसा महायज्ञ पहली बार हो रहा है।
सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी यह ऐतिहासिक है, इसमें झुग्गियों से लेकर महलों तक रहने वाले विभिन्न समाज नेता, धर्म नेता, राज नेता, सभी आ रहे हैं। दक्षिण के साठ से अधिक आचार्य यहां आए, जिनको वेद कंठस्थ हैं। विद्वान आए हैं जो शुरु से जो वाक्य पढ़ा उसे उसी स्वर में विपरीत दिशा में भी उसको उसी रूप में बोल सकते हैं। चारों वेदों के मंत्र का सस्वर उच्चारण भगवान को समर्पित किया गया।ऐसे अनुष्ठान अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करते है। यज्ञ व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करता हैं।