भारतीय सिनेमा जगत की लाडली और सबसे बुजुर्ग अभिनेत्री, भारत सरकार द्वारा पद्मर्शी, पद्मभूषण और पद्मविभूषण खिताबों से नवाजी जा चुकीं नृत्य निर्देशक जोहरा सहगल जैसा जीवन बहुत कम लोगों को नसीब होता है। वह सारी उम्र सक्रिय रहीं और एक्ट्रेस शब्द को उन्होंने अपने जीवन में कुछ इस तरह उतारा कि नई पीढ़ी के नौजवानों के लिये वह प्रेरणास्रोत और रोल मॉडल बनी रहीं। वर्ष 2012 में जोहरा सहगल ने जब 100 साल पूरे किए थे, तब अमिताभ बच्चन ने उन्हें 100 साल की बच्ची संबोधित करते कहा था कि जोहरा एक छोटी सी बच्ची की तरह हैं और इस उम्र में भी उनकी असीमित ऊर्जा देखते बनती है। चीनी कम के सैट पर जोहरा हमेशा सबको बड़े प्यार से पुरानी कहानियां सुनाया करती थीं। खुद जोहरा सहगल कहती थीं कि उनकी लंबी उम्र का राज लंबे समय तक सक्रिय रहना है, अगर आप निष्क्रिय होकर घर पर बैठ गए तो समझ लीजिए आप खत्म हो गए।
विलक्षण प्रतिभा और ऊर्जा से भरपूर जोहरा सहगल ने फिल्मी दुनिया के विख्यात कपूर खानदान की चार पीढ़ियों पृथ्वीराज कपूर से लेकर रणबीर कपूर के साथ काम किया था। मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब ने जोहरा के निधन पर कहा, वह अपनी शतरें पर जिन्दगी जीने वाली महिला थीं। देखा जाए तो यह अपनी शतरें पर जिन्दगी जीना ही उनकी असीमित ऊर्जा और चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मीठी सी मुस्कराहट का राज था। पारम्परिक मुस्लिम घराने में जन्मी तथा घोर पर्दा प्रथा में पली-बढ़ीं जोहरा को रूढ़ परम्पराएं बांधकर नहीं रख सकीं। उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सहारनपुर में 27 अप्रैल 1912 में जन्मी साहबजादी जोहरा बेगम मुमताज उल्ला खान र्जमनी के ड्रेस्डेन में मैरी विगमैन्स बैले स्कूल में बैले की शिक्षा ग्रहण करने वाली पहली भारतीय थीं। यूरोप टूर के दौरान उदय शंकर की नृत्य नाटिका ‘शिव पार्वती’ से प्रभावित होकर वह उदय से मिलीं और उनके साथ जापान टूर पर गयीं। वहां से भारत लौटने पर जोहरा की मुलाकात युवा वैज्ञानिक, चित्रकार एवं नर्तक कामेश्वर सहगल से हुई। घर, परिवार के घोर विरोध के बावजूद 14 अगस्त 1942 में उन्होंने कामेश्वर से विवाह कर लिया। कामेश्वर और जोहरा विभाजन के बाद मुंबई पहुंच गए थे, जब आजादी का जुलूस निकला तो जोहरा सारी रात सड़कों पर जुलूस के साथ नाचती रहीं। उस समय फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने उन्हें भारत की इसाडोरा डंकन कहा था।
जोहरा सहगल पृथ्वी थियेटर और भारतीय जन नाट्य संघ ‘इप्टा’ से भी जुड़ी रहीं। अभिनय की बारीकियां उन्होंने अपने पहले प्यार थियेटर से ही सीखीं और उसे ताउम्र संवारने के लिये जद्दोजहद में पीछे नहीं हटीं।अपने करियर की शुरुआत उन्होंने वर्ष 1946 में इप्टा के सहयोग से बनी ख्वाजा अहमद अब्बाद निर्देशित पहली फिल्म धरती के लाल से की थी। बलराज साहनी ने भी बतौर अभिनेता अपने करियर का आगाज इसी फिल्म से किया था। अपने करियर के दौरान हिन्दी के अलावा कई अंग्रेजी फिल्मों में भी उन्होंने काम किया। बीबीसी द्वारा बनाए गए पड़ोसी (1976-77) धारावाहिक से उन्हें काफी नाम मिला। 1984 में सीरियल ‘ज्वैल इन द क्राउन’ में लेडी चटर्जी का रोल उनके करियर का चरम बिंदु था। ‘तंदूरी नाइट्स’ (1985-87) में वे दादी के रोल में थीं और लंदन का हर छोटा-बड़ा दर्शक उन्हें पहचानता था। यह विडंबना ही है कि आजीवन सक्रिय रहीं इस सुख्यात अभिनेत्री ने अपने अंतिम वर्षों में सरकार से एक फ्लैट की मांग की थी, जिसे वे मन में लिये ही चली गयीं।