अपने ज्यादा मंत्री बनाकर और गृह मंत्रालय लेकर भाजपा ने संभाली बिहार की ड्राइविंग सीट, लगता नहीं है लंबे समय तक नीतीश मुख्यमंत्री रह पाएंगे
आंकलन : ओम माथुर
भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती थी कि इस बार बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। उसकी योजना और रणनीति खुद का मुख्यमंत्री बनाने की थी। लेकिन कुछ नीतीश कुमार की होशियारी और कुछ भाजपा की मजबूरी के कारण दसवीं बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन इस बार जो कुछ नीतीश कुमार के साथ हुआ, उससे यह तो जाहिर की 5 साल तो छोड़िए,अगर वह 2 साल भी मुख्यमंत्री रह लिए तो ये उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। चुनाव पूर्व सीटों के वितरण से लेकर मंत्रिमंडल में सदस्यों की संख्या और विभागों के वितरण में भाजपा ने नीतीश कुमार को चारों खाने चित करके यह जता दिया कि वह बिहार में अब नाम के ही सीएम हैं। उनके पास ताकत नहीं रही। अपने 20 साल के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में पहली बार नीतीश कुमार गृह मंत्रालय अपने पास नहीं रख सके। भाजपा के पास गृह मंत्रालय का आना इस बात का साफ संकेत है कि उसने नीतीश को मुख्यमंत्री भले ही बना दिया हो,लेकिन इस बार बिहार में ड्राइविंग सीट पर वही रहेगी और अब बराबरी का नहीं ,बल्कि बड़ा भाई बनकर रहेगी।
किसी भी मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण और ताकतवर विभाग गृह मंत्रालय होता है। लगभग हर राज्य में मुख्यमंत्री बनने वाला नेता गृह मंत्रालय को अपने पास ही रखता है। ताकि सरकार उसका प्रभावी नियंत्रण बना रहे। लेकिन अब बिहार में ये डिप्टी सीएम भाजपा के सम्राट चौधरी को दिया गया है। वह सम्राट चौधरी, जिन पर चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर ने हत्या के एक मामले में आरोपी होने,अलग-अलग जन्मतिथि से दस्तावेज बनाने तथा फर्जी डिग्री हासिल करने के आरोप लगाए थे। लेकिन अब वही सबसे ज्यादा ताकतवर मंत्री बन गए हैं। राज्य में होने वाली हर छोटी- बड़ी घटना और खुफिया जानकारियां अब नीतीश से पहले भाजपा के पास पहुंचेगी। राजकाज पर नियंत्रण में पुलिस और खुफिया तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

माननीय @NitishKumar जी को लगातार 9वीं बार मुख्यमंत्री, @samrat4bjp जी एवं @VijayKrSinhaBih जी को उपमुख्यमंत्री एवं सभी नवनिर्वाचित मंत्रियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं! मोदी जी के मार्गदर्शन में डबल इंजन की सरकार अब “विकसित बिहार-सशक्त बिहार” को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी! बिहार बदलेगा, बिहार बढ़ेगा!
यह नीतीश की जीत के बाद भी सबसे बड़ी राजनीतिक हार कही जा सकती है। बिहार में पिछले 53 साल में पहली बार ऐसा हुआ है,जब मुख्यमंत्री के पास गृह मंत्रालय नहीं रहा। भाजपा ने इस बार साल 2020 के चुनावों के मुकाबले जेडीयू को 114 की जगह 101 सीटें ही दी। खुद भी इतनी ही सीटों पर लड़ी। भाजपा ने 101 में से 89 और जेडीयू ने 85 सीटें जीती थीं। लेकिन जीती सीटों में ज्यादा अंतर नहीं होने के बाद भी मंत्रिमंडल में शामिल 26 में से 14 सदस्य भाजपा और सिर्फ आठ सदस्य जेडीयू के शामिल किए गए हैं। इसके अलावा भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष भी अपना बनाया है। न सिर्फ गृह बल्कि नगर विकास एवं आवास, कृषि ,स्वास्थ्य,वन,उद्योग राजस्व एवं भूमि सुधार, सहकारिता, खान,श्रम जैसे कई महत्वपूर्ण महकमे भी भाजपा के पास हैं।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भाजपा ने नीतीश को इसलिए सीएम बनने दिया,ताकि उनका ईबीसी वोट बैंक नाराज ना हो। उसकी रणनीति नीतीश को नाम का मुख्यमंत्री बनाकर रखने की है और वह भी बहुत लंबे समय तक नहीं। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा ने नीतीश के सामने ढाई -ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन नीतीश नहीं माने।इसीलिए वह जब राजपाल से मिलने गए,तो उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। बल्कि विधानसभा भंग करने की सिफारिश करके लौट आए। ऐसे में भाजपा के पास उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मजबूरी थी। लेकिन मंत्रिमंडल गठन में भाजपा ने साफ कर दिया कि नितीश बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री के पद पर बहुत दिन के मेहमान नहीं है। जिस तरह भाजपा ने महाराष्ट्र में खेल किया, आने वाले समय में वो बिहार में कर सकती है। उसने महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना को तोड़ खुद को मजबूत किया था।
चुनाव पहले से ही नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चर्चा होती रही है। शायद यही उनके मुख्यमंत्री पद छोड़ने या छुड़वाने का भविष्य में कारण बने। हिंदी भाषी राज्यों में अभी बिहार,झारखंड और हिमालय प्रदेश में ही भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान ,हरियाणा ,छत्तीसगढ़,उत्तराखंड,और केंद्र शासित दिल्ली में उसके मुख्यमंत्री हैं।







