यूपी में लगभग दस करोड़ है संख्या, सपा ने सितम्बर में दिव्यांगों संग की थी मंत्रणा, बसपा ने 21 को बुलाई बैठक
उपेन्द्र नाथ
दिव्यांग भी अब राजनीति में काफी अहमियत रखने लगे हैं। यही कारण है कि हर राजनीतिक दल इनके लिए अलग से विंग बनाने, अलग से बैठकें करने की रणनीति पर काम करने लगे हैं। इसका कारण है दिव्यांगों के मन में भी उठी महत्वाकांक्षा की चिंगारी है। प्रदेश में 10 करोड़ के लगभग इनकी जनसंख्या है। इनके वोटों का महत्व समझकर ही सपा ने सितम्बर माह में दिव्यांगों की बैठक बुलाई थी तो वहीं बसपा 21 नवम्बर को बैठक करने जा रही है।
जनतंत्र में बहुलता और एकजुटता की पूछ हर जगह होती है। पहले दिव्यांगों की पूछ राजनीतिक दलों में न के बराबर थी। लेकिन अब कांग्रेस व भाजपा दिव्यांग प्रकोष्ठ बना चुकी हैं। दिव्यांगों को दृष्टि में रखकर उप्र सरकार ने कई कार्यक्रम भी कराएं हैं। दिव्यांगों के लिए उपकरण वितरण को समारोह के रूप में हर जिले व ब्लाक मुख्यालय पर करना भाजपा का राजनीतिक स्टंट ही है। भाजपा की सरकार बनते ही विकलांग को दिव्यांग नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया था। इसका कारण था कि वे इनके महत्व को समझते थे। इसके बाद तो हर पार्टी इनके महत्व को समझने लगी।
अभी समाजवादी पार्टी भी कई बार मंथन करने के बाद सितम्बर माह में पूरे प्रदेश के दिव्यांगों की बैठक बुलाई थी। पार्टी में भी दिव्यांग प्रकोष्ठ बनाने पर चर्चा हुई। दिव्यांगों के लिए विभिन्न पहलुओं पर बात होने के बाद इनके राजनीतिक महत्व पर भी बात हुई थी। पूरी सम्भावना है कि चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी दिव्यांग प्रकोष्ठ बना लेगी।
बहुजन समाज पार्टी दिव्यांगों के महत्व को समझते हुए 21 नवम्बर को बैठक बुलाई है। दिव्यांग जनों की उस बैठक में मायावती के भी रहने की सम्भावना है। उस बैठक में दिव्यांगों को लुभाने के लिए घोषणा पत्र में उनके लिए किये जाने वाले विशेष कामों पर भी चर्चा हो सकती है।