अविनाश मिश्र
मित्रो जीवन की सर्वाधिक रस-सिक्त और कौतुक पूर्ण प्रक्रिया है-स्पर्श। जो जीवन की कटुताओं को भुलाकर जीने का सम्बल देती है। जीवन के उसी जादुई स्पर्श के चलते सृष्टि का कारोबार चल रहा है। कहते हैं एक जापानी छात्र ने विश्वविद्यालय के अपने प्रोफ़ेसर से पूछा कि ‘बाइबिल में लिखा है एक समय आएगा जब लोग स्पर्श के ज़रिए ही चिकित्सा करेंगे! क्या यह संभव है?’ वे प्रोफ़ेसर मनीषी थे- तत्काल तो वे उस सवाल का उत्तर नहीं दे पाए, पर उन्होंने सोचा कि एक छात्र के किसी प्रश्न का उत्तर यदि विश्वविद्यालय का प्रोफ़ेसर ही नहीं दे सकता तो वह किसके पास जाए? तब उस सवाल का उत्तर जाननेे के लिए वे दुनिया भर में भटके। आख़िर तिब्बत में उन्हें बुद्ध सूत्रों में उसका जवाब मिला और रेकी चिकित्सा अमल में आई।
ख़ैर, स्पर्श के सबके अपने-अपने रोमांचक अनुभव हैं। आप सभी चूँकि बालिग हैं, इसलिए उस सब में जाने का कोई ज़ोखिम मोल लेने की बजाए मैं इसे आपकी कल्पना और रसीले जीवन अनुभवों पर छोड़ता हूँ। पर क्या इसी ‘स्पर्श-कथा’ के ज़रिए हम स्त्री-पुरुष विमर्श का ऐसा कोई आख्यान भी रच सकते हैं जो अपनी संरचना में हमारे समाज और मानव सम्बन्धों की गहराई से पड़ताल करते हुए एक नई इबारत लिख सके?जहाँ समाज, व्यक्ति, उसकी अमीरी-गरीबी, सामाजिक जीवन संस्तर, लैंगिक आकर्षण, रूचि-अरुचि, रिश्तों को लेकर ईमानदारी-बेईमानी सभी कुछ शामिल हो। युवा कवि अविनाश मिश्र ने आलोचना पत्रिका के युवा-कविता विशेषांक में प्रकाशित अपनी कविता- ‘स्पर्श-कथा’ में इस अद्भुत काम को बखूबी कर दिखाया है।
क्या नहीं है इस अद्भुत अपूर्व स्पर्श-कथा में? वहाँ मुल्तानी मिट्टी से महकता देहात है,तो जीवन के स्थायी अभावों का दारिद्र भी। सबसे महँगे इत्र की गमक है तो सबसे सस्ती शराब की हीक भी। राजे-महाराजाओं के संगमरमर के आवास हैं तो सताए हुए अस्तित्वों की विवश गंध भी। आम का अचार है तो कमबख्त व्यभिचार भी। गज़ब तो तब होता है जब अविनाश स्पर्श की अपनी इस विरल गाथा में स्त्री से स्त्री और पुरुष से पुरुष के वर्जित स्पर्श तक को समेट लेते हैं-जो सारी वर्जनाओं पर भी जीवन की एक विकट सचाई है। और अंत में ‘मेरी स्त्री जब मेरे पुरुष को छूती थी तो उसे अपरिचय की गंध आती थी’ कहकर वे कितने उन स्पर्शों का कड़ुआ सच उजागर कर देते हैं जिनमें जीवन की समरसता का ताज़िंदगी अभाव रहा । वही बात ‘मेरे पुरुष द्वारा मेरी स्त्री को छूने से जुड़े भय को लेकर भी कही जा सकती है।इन सभी अच्छी-बुरी गंधों को महक कहकर अविनाश स्पर्श से जुड़े उसअनिवार्य आकर्षण की महिमा का बखान करते हैं जिसके चलते तमाम अच्छाई और बुराइयों के बाद भी जीवन का यह विचित्र घालमेल वाला क्रम चल-और निभ रहा है!
जीवन ऊर्जा से लबरेज़ अनूठी कविताओं के धनी अविनाश साहित्यिक समालोचना के भी अद्भुत व्याख्याता हैं।समकालीन कविता के कई धुरंधरों पर उन्होंने ‘पहल’ और अन्य कुछ पत्रिकाओं में जो मूल्यांकन परक लेख लिखे हैं-वे खासी चर्चा में हैं। ऐसे संभावनाशील युवा कवि का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार चयनकर्ताओं को न दिखना क्या वाकई हैरतअंगेज़ नहीं है ?
स्पर्श-कथा
एक स्त्री जब एक पुरुष को छूती थी
तब उसे मुल्तानी मिट्टी की महक आती थी
एक दूसरी स्त्री जब एक दूसरे पुरुष को छूती थी
तब उसे स्थायी अभावों की महक आती थी
एक तीसरी स्त्री जब एक तीसरे पुरुष को छूती थी
तब उसे संसार के सबसे महँगे इत्र की महक आती थी
एक चौथी स्त्री जब एक चौथे पुरुष को छूती थी
तब उसे संसार की सबसे सस्ती शराब की महक आती थी
एक पाँचवी स्त्री जब एक पाँचवे पुरुष को छूती थी
तब उसे संगमरमर की महक आती थी
एक छठवीं स्त्री जब एक छठवें पुरुष को छूती थी
तब उसे एक सताए हुए अस्तित्व की महक आती थी
एक सातवीं स्त्री जब एक सातवें पुरुष को छूती थी
तब उसे आम के अचार की महक आती थी
एक आठवीं स्त्री जब एक आठवें पुरुष को छूती थी
तब उसे व्यभिचार की महक आती थी
एक स्त्री जब एक स्त्री को छूती थी
तब उसे बदनामी की महक आती थी
एक पुरुष जब एक पुरुष को छूता था
तब उसे गुमनामी की महक आती थी
मेरी स्त्री जब मेरे पुरुष को छूती थी
तब उसे अपरिचय की महक आती थी
मेरा पुरुष जब मेरी स्त्री को छूता था
तब उसे भय की महक आती थी !