मुद्दे : जी के चक्रवर्ती
आज देश कई विद्रुप परिस्थितियों से गुजर रहा है जिसमे सबसे पहला तो यह है कि अचानक कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी चिंता बढ़ाने वाली बात तो है ही दूसरी तरफ देश के पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में इवीएम के गड़बड़ीयों के समाचार से लेकर राजनीतिक धरातल पर कुचक्र रचने और तमामों उठा पटक के बीच इस समय सम्पूर्ण देश मे एक तरह की विद्वेष पूर्ण भावना व्यप्त होती चली जा रही है जिससे ऐसा लगने लगा है कि आने वाले दिनों मे कुछ न कुछ अनिष्ट देखने को मिलें तो बहुत बड़ी बात नही है।
वर्तमान समय में सभी तरह के विकास कार्य या तो अवरुद्ध पड़े या रुक-रुक के आगे बढ़ रहे हैं। देश मे अगर कुछ कार्य हो भी रहा है तो वह केवल और केवल देश के पांच राज्यों के चुनावों तक ही सभी लोगों का ध्यान केंद्रित हो कर रह गया है। यह स्वाभाविक सी बात है कि जिसकी नैया डूब रही होती है उस नाव के माझी के अंदर सबसे अधिक बौखलाहट और खीझ देखने को तो मिलेगी ही साथ ही साथ उसके द्वारा स्थितियों को संभालने के लिये किये जा रहे प्रयासों की बात करें तो हमें यही कहना पड़ता है कि इस तरह की हरकतें एक बचकानी सी बात लगती है कि उनके द्वारा उठाये जा रहे प्रत्येक कदमों और कार्यों से उनके अन्दर व्याप्त बौखलाहट बिल्कुल स्पष्ट रूप से झलकता है।
अभी पिछले दिनों शुक्रवार 2 अप्रैल के दिन किसान नेता राकेश टिकैत के काफिले पर राजस्थान के अलवर जिले से निकलते समय वहां पर उपस्थित भीड़ ने उनके ऊपर पथराव किया यह घटना उस समय घटित हुई जब वे राजस्थान के बानसूर में एक किसान सभा को संबोधित करने जा रहे थे। जिसमे टिकैत का कथन है कि अलवर जिले के ततारपुर चौराहे पर स्वागत करने के बहाने एकत्र हुये लोगों ने उन पर हमला किया और उन पर काली स्याही भी फेंकी। टिकैत का यह भी आरोप है कि उन्हें थप्पड़ भी मारा गया।
इस तरह की बचकानी हरकतों से तो यही बात सिद्ध होता है कि “खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे” जैसी उपमा सटीक प्रतीत जान पड़ती है।