औकात नहीं है
गधे पर भी बैठने की।
मगर सब के सब
अपने दरवाजे पर
हाथी पाले बैठे हैं।
उस मुल्क के चोर…
बड़े दिमागदार हैं…
सब के सब अब
चोर से डाकू ही नहीं…
चौकीदार भी बन बैठे हैं।
यहां अनपढ़ भैया हैं
जहाँपना…जिल्लेइलाही…
और पढ़ाकू भैया तो
बेरोजगार बने बैठे हैं…
इसीलिए वे भी कभी कभी…
छोटी छोटी चोरी कर लेते हैं…
- गौरव मिश्रा