टीचर की सजा से दुखी होकर कर ली खुदकुशी
गोरखपुर 21 सितंबर :: कोई माने या न माने लेकिन यह अकाट्य सत्य है कि स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे अब आधुनिक पढाई और टीचर्स के अनुशानिक दबाव के कारण अपनी मानसिक पीड़ा किसी से कह नहीं पाते जिसका परिणाम हमें उनकी ख़ुदकुशी के रूप में आये दिन देखने को मिलता है। अब नया मामला गोरखपुर से है जहाँ 5वीं में पढ़ने वाले एक छात्र ने टीचर की सजा से दुखी होकर खुदकुशी कर ली, मरने से पहले छात्र ने सुसाइड नोट में अपनी आखिरी इच्छा में लिखा था कि मेरी मैम से कहें कि वह इतनी बड़ी सजा किसी को न दें।
11 साल का 5वीं क्लास में पढ़ने वाला नवनीत प्रकाश ने 15 सितंबर को क्लास टीचर की सजा से तंग आकर जहर खा लिया था. कल उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। सेंट एंथोनीज कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले नवनीत की क्लास टीचर ने उसे किस तरह की सजा दी थी. ये उसने खुदकुशी से पहले लिखे सुसाइड नोट में भी बयां किया है। जिसे सुनकर हर मां-बाप का कलेजा दर्द से भर आएगा।
’पापा, आज 15 सितंबर मेरा पहला एग्जाम था, मेरी मैम क्लास टीचर ने मुझे सवा 9 तक रुलाया और खड़ा रखा, इसलिए क्योंकि वह चापलूसों की बात मानती हैं, उनकी किसी बात का विश्वास मत करिएगा. कल उन्होंने मुझे तीन पीरियड खड़ा रखा, आज मैंने सोच लिया है कि मैं मरने वाला हूं, मेरी आखिरी इच्छा मेरी मैम को किसी बच्चे को इतनी बड़ी सजा न देने को कहें।
अलविदा पापा-मम्पी और दीदी
परिवार के मुताबिक नवनीत पढ़ने में होनहार था, उसकी नजरों में गुरू का स्थान कितना बड़ा था .ये उसने अपनी डायरी में भी लिख रखा था।
हीरों-वीरों का देश है ये
गुरू-वीरों का देश है ये
बुद्ध क्राइस्ट का
महावीर का
ऋषि-मुनि का देश है ये
लेकिन उसकी गुरू ही उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी विलेन बन जाएंगी किसी ने नहीं सपने में भी नहीं सोचा होगा। बच्चे के परिवार वालों ने आरोपी टीचर और स्कूल के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया है।
इस मामले में अभी तक स्कूल प्रबंधन की ओर से कोई सफाई नहीं आई. अभी गुरुग्राम के स्कूल में प्रद्युम्न की हत्या का मामला सुलझा भी नहीं है कि गोरखपुर की इस घटना ने एक बार फिर स्कूल के अंदर मासूमों के साथ होने बर्ताव पर सवाल खड़ा कर दिया है।
विशेष
स्कूल, प्रशासन,योगी, मोदी किसी की भी गलती निकालने से पहले अपने नौनिहाल का चेहरा प्यार से ध्यान से देखिये।देखिये की उसके मासूम चेहरे पर आपकी महत्वाकांक्षा,कुंठा ,सपनों की लकीरें तो नहीं? दूसरों को दोष देने से पहले सोचिये की आपके ह्रदय का टुकड़ा आखिर क्यों अपने ह्रदय की बात आपको नहीं बता पाया?क्यों उसको भरोसा नहीं था आप पर,जहर पर आपसे ज्यादा भरोसा कैसे हो गया? क्यों उसको यकीन नहीं था की उसके पापा उसकी छोटी छोटी प्रॉब्लम से लड़ पाएंगे?
जान इन बच्चों की नहीं ,हमारे ऊपर उनके विश्वास की जा रही है।उनकी छोटी छोटी बातों को सुनिए,समय दीजिये।उनकी प्रोब्लेम्स के लिए स्कूल प्रशासन को चिठ्ठी लिखिए ,जरूरत पड़े तो खुद जा कर मिलिए। तब किसी को दोष दीजिये।