इमली का बूटा बेरी का पेड़ चल घर जल्दी हो गई देर

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शिव चरण चौहान

सन 1991 में एक फिल्म आई थी सौदागर। सौदागर में यह गीत गीतकार आनंद बक्शी का लिखा गीत था।

इमली का बूटा बेरी का पेड़
चल घर जल्दी हो गई देर।।

आनंद बक्शी साहब और गीत गाने वाली साधना को शायद यह नहीं मालूम रहा होगा कि बेरी का पेड़ बूटा यानी छोटा पेड़ होता है और इमली का विशाल दरख़्त। इमली और बेर के फल सदियों से बच्चों से लेकर बड़े बूढ़ों के मुख में पानी लाते रहे हैं । बेर के फल देखते ही खाने का मन करने लगता है मुंह में पानी आने लगता है।
शबरी के बेर तो पौराणिक काल से ही प्रसिद्ध है।
अकबर के दरबार के दरबारी नवरत्न कवि रहीम दास ने बेर और केर यानी केला के पड़ोसी होने के बारे में लिखा था_
कहु रहीम कैसे निभे, बेर, केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।।
जब बेर का बूटा /पेड़ हवा के साथ झूमता है तो केले के कोमल पत्ते बेर के कांटों से फट जाते हैं।
कवि भूषण ने लिखा था
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी
तीन बेर खाती वो तो तीन बेर खाती हैं।।
अवधी मैं एक कहावत है
भूखे बेर अघाने गन्ना
भूख लगने पर बेर खाने चाहिए और पेट भरा होने पर गन्ना चूसना चाहिए।
बेर , एक कांटेदार पेड़/ पौधा होता है। जिसके फल तोड़ने पर अक्सर हाथ में कांटे चुभ जाते हैं।
मेरी बेरी का बेर मत तोड़ो
कोई कांटा चुभ जाएगा।
एक झटके में डार मत तोड़ो
कोई कांटा चुभ जाएगा।।
यह गीत सन 1968 में आई फिल्म अनोखी रात में आशा भोंसले ने गाया था और इसी लिखा था सुप्रसिद्ध गीतकार इंदीवर ने।
इंडीवर को यह पता था की बेरी के पेड़ में कांटे होते हैं। बेर के फल तोड़ने पर कांटे हाथ में चुभ जाते हैं।
आज बेर के पेड़ बिना कांटे वाले भी आ गए हैं। बेर भी बड़े-बड़े स्वादिष्ट और मीठे आ गए हैं और वैज्ञानिकों ने बेर के पेड़ से कांटे गायब कर दिए हैं।
बेर का पेड़ एक भारतीय पेड़ है जो जंगल से लेकर बाग बगीचों तक में उगाया लगाया जाता है। बेर में फूल श्वेत रंग के अगस्त सितंबर में आते हैं और अक्टूबर-नवंबर में फल आने लगते हैं। दिसंबर से लेकर मार्च तक बेर के फल तोड़े खाए जा सकते हैं।
बेर सर्दियों में फलने फूलने वाला वृक्ष है। मार्च के बाद बेर के पेड़ की सारी पत्तियां झड़ जाती हैं और बेर का पेड़ गंजा होकर पूरी गर्मी गुजारता है। फिर बरसात में कोंपलें आने लगती हैं।
बेर के फल भगवान शिव को बहुत पसंद है। इसलिए भगवान शिव को महाशिवरात्रि के अवसर पर बेर के फल समर्पित किए जाते हैं।

बेर के वृक्ष के नीचे ही सिक्खों के गुरु नानक देव को ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह गुरु नानक बने थे। इसीलिए सिख भी बेर के पेड़ का बहुत आदर करते हैं।

भारत में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बेर के पेड़ आसानी से उग आते हैं। यह पेड़ वर्षा जल से ही अपना जीवन यापन करता है और 40 से 50 साल तक हरा भरा रह सकता है।

देसी बेर का पेड़ थोड़ा बड़ा होता है और करीब 10 से 15 मीटर तक ऊंचा होता है जबकि झरबेरी की झाड़ियां होती हैं और यह झाड़ियां जंगल में या किसानों के खेत में अपने आप उग आती हैं। झाड़ी 2 फीट से लेकर डेढ़ 2 मीटर ऊंची तक हो सकती है।

झरबेरी के फल सर्दियों में आते हैं एकदम कंचे की तरह गोल। पहले हरे और पकने के बाद नारंगी और फिर लाल कत्थई रंग के हो जाते हैं। कुछ बेर खाने में खट्टे और कुछ मीठे होते हैं। बेर के फलों को तोड़कर धूप में सुखा लिया जाता है और फिर गुठली समेत पीसकर गुड़ की चासनी में मिलाकर बेर के चूर्ण की गोलियां बनाई जाती हैं। खट्टी मीठी गोलियां बाजारों में बिकती हैं और बच्चे बड़े चाव से खाते हैं। कई बड़ी-बड़ी कंपनियां बेर से बनी गोलियां पैकटों में बंद करके बेंच ती हैं। सूखे बेर से अनेक दवाएं और खाद्य सामग्री बनाई जाती है।

बेरी के पेड़ में लगने वाले बेर खट्टे मीठे होते हैं। पहले हरे होते हैं फिर नवंबर में पकना शुरू होते हैं और मार्च तक बेर आते रहते हैं। बेर के फूलों पर मधुमक्खियां पराग लेने के लिए मंडराती रहती हैं और बेर के फूलों का शहद बहुत अच्छा माना जाता है। सफेद फूलों के बाद कच्चे फल लगने शुरु होते हैं और फिर फल पीले रंग के नारंगी रंग के लाल सुर्ख रंग के और कई बेर के फल तो कत्थई रंग के भी हो जाते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों ने बेर की कई किस्में विकसित की हैं। इनमे एक प्युदी ( पेंवदी) बेर भी है। किसका पल एक अंगुल का लंबा वर्तुल आकार का होता है और खाने में बहुत मीठा होता है। कच्चा बहुत गहरे हरे रंग का और पकने पर हल्का पीला और हरे रंग का होता है। इसे तोते बहुत खाते हैं। बुलबुल भी मीठे बेर बहुत खाती है। बाजारों में यही बिकने आता है और हाथों हाथ बिक जाता है। उत्तरप्रदेश में बलिया देवरिया गोरखपुर बस्ती रायबरेली बांदा बुंदेलखंड पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा और राजस्थान गुजरात में बेर के फल खाए जाते हैं। बेर की खेती की जाती है।
भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान श्रीलंका म्यांमार में भी बेर के पेड़ पाए जाते हैं।

झारबेरी का वैज्ञानिक नाम जीजिफस लिंबिनारिया है।
बेर का वैज्ञानिक नाम जीजीफस जीनस है और रैन बैक्सी कुल से संबंधित है। भारत, चीन और मलाया दक्षिण अफ्रीका में इसके वृक्ष प्राचीन काल से पाया जाते रहे हैं। बेर की दुनिया भर में 50 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें 18 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। वैज्ञानिकों ने कलम बांधकर बेर की करीब 125 नई प्रजातियां विकसित की हैं।

बेर का फल विटामिनों और खनिजों से परिपूर्ण है। विटामिन ए बी सी बहुतायत में पाया जाता है। बेर की पत्तियां, बेर के फूल और बेर के फल अनेक आयुर्वेदिक औषधियों में काम आते हैं। मधुमेह रोगियों के लिए बेर औषधि का काम करता है

बेर का पेड़ किसी ना किसी रूप में भारत के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। सीतापुर के पास तो नैमिषारण्य में बदरी वन है।
संस्कृत में बेर को बदरिका फल कहा जाता है।
अन्य बदरिका कारा बहिरेव मनोहरा।
संस्कृत में कथा आती है की बेर का फल ऊपर से देखने में तो सुंदर होता है पर अंदर इतनी कड़ी गुठली पाई जाती है कि उसे दांत भी नहीं छोड़ पाते हैं कई बार तो दांत ही टूट जाते हैं।
बेर का पेड़ शुष्क एवं खराब से खराब जल हवाई में भी अपने जिंदा रहने का रास्ता खोज लेता है। बेर की मूसलाधार जड़ जमीन के बहुत नीचे जाकर पानी ग्रहण कर लेती है। कई बार तो ऐसा लगता है कि बेर का पेड़ सूख गया है किंतु यह फिर बरसात में जिंदा हो उठता है।

झड़बेरी तो किसान हर मौसम में अपने खेत से काटकर बाहर फेंक देते हैं। खेत की बाड़ बना लेते हैं किंतु झर बेरी का पेड़ बरसात के बाद फिर अपने उग आता है। पुरखों ने बेरी के पेड़ को घर के दरवाजे और निवास के आसपास लगाने से मना किया है। (फेसबुक से साभार )

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