भीषण युद्ध की तबाही कब थमेगी कहना मुश्किल है साल भर पहले हमास के हमले के जवाब में जब इजरायल ने पलट वार किया तो इसे जैसे को तैसा के अंदाज में दिया जवाब माना गया। तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि अब उस क्षेत्र में तबाही का सिलसिला लंबे समय तक जारी रहने वाला है। गाजा पर तो जबर्दस्त हमले जारी ही हैं, जंग के दायरे में लेबनान भी आ गया है और ईरान भी इससे ज्यादा दिन दूर नहीं रहेगा। हमास का साथ देने हिजबुल्लाह के कूदने से उसके ठिकाने लेबनान की राजधानी बेरूत भी इजरायल के निशाने पर आ गई है। दक्षिणी लेबनान में तो बाकायदा विध्वंस हो रहा है।
गाजा पर साल भर से ज्यादा समय से हो रहे हवाई हमलों व जमीनी अभियान से पैंतालीस हजार से अधिक फिलिस्तीनियों की जानें जा चुकी हैं जिनमें ज्यादातर छोटे बच्चे और महिलाएं थीं। अभी भी कोई नहीं बता सकता कि इस व्यापक नरसंहार में और कितने लोग अपने जीवन से हाथ धोएंगे। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस इजरायली हिंसा के नंगे नाच में मानवाधिकारों का जिस बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है, उसे लेकर कहीं से भी कोई प्रभावी विरोध नहीं हो रहा है।
हमास मुखिया की तेहरान में हुई हत्या और उसके बाद की घटनाओं पर जिस तरह ईरान की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उससे यह आशंका जाहिर होती जा रही है कि देर सबेर वह भी इजरायली हमलों की जद में आ जाएगा। ईरान भी इसके लिए तैयार है और किसी भी संभावित हमले का करारा जवाब देने की बात कहता आ रहा है। अपनी सेना के शीर्ष कमांडरों के मारे जाने से वह पहले से ही जबर्दस्त गुस्से में है ।
यह सही है कि अमेरिका से मिलने वाली हर तरह की भरपूर मदद के बल पर पश्चिम एशिया-मध्य पूर्व में अब इजरायल ताकतवर हैसियत में स्थापित हो चुका है। इसी अकड़ में वह एक के बाद एक मोर्चे खोलता जा रहा है और हर जगह विनाश की स्थिति बनाने में जुटा है। यह भी तय है कि ताकत की आजमाइश में अगर ईरान सक्रिय रूप से कूद गया तो तबाही और व्यापक पैमाने पर फैलेगी जिससे उस क्षेत्र के लोग तो खतरे में पड़ ही जाएंगे, बड़े स्तर पर उसका असर दुनिया पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा।