कुनकुनी सी धूप
नर्गिस फूलों सा मेरी,
गीतिका का रूप है
पुलक है प्राणों की और
भावों का रंग अनूप है
रेंगती पगडंडियों पर
फूल भी हैं शूल भी
दूर दिखता तो है
पीड़ा की नदी का कूल भी
डूब कर मन का उभरना,
भाग्य पर विद्रूप है
नर्गिस फूलों सा मेरी
गीतिका का रूप है
मेरे मस्तक पर लिखा
जिसने भी ये भटकन-भ्रमण
उस अदेखी लेखनी को
है मेरा शत्-शत् नमन
यह भ्रमण जीवन शिशिर की
कुनकुनी सी धूप है
पुलक है प्राणों की और
भावों का रंग अनूप है।
- आशा शैली