आज एक जिंदा लाश हूं मैं,
लोगों के लिए परिहास हूँ मैं।
करने की तो बहुत की कोशिश,
मगर आज बहुत उदास हूं मैं।।
जब मैं पढ़ने गया था प्रयाग,
आगे बढ़ने को दिल में धधक रही थी आग।
कर लिया मैं बी.ए, एम.ए पास,
देता रहा साक्षात्कार, लगी रही आस।
मगर मित्रों, आज मैं हूं बहुत उदास।।
पहले सीनियर्स को देख हंसता था मैं,
आज खुद हंसी का पात्र हूं मैं।
आज एक जिंदा लाश हूं मैं,
लोगों के लिए परिहास हूं मैं।
अब चतुर्थ श्रेणी में जा सकता नहीं मैं।
करके पीएचडी दुखड़ा गा सकता नहीं मैं।
थैली में नहीं हैं रुपये चाय भर,
फिर भी रिक्शा तो नहीं चला सकता हूं मैं।
इस कारण आंखों में है आंसू,
आज बहुत ही उदास हूँ मैं।
मित्रों, एक जिंदा लाश हूं मैं,
लोगों के लिए परिहास हूं मैं।।
- उपेंद्र नाथ राय ‘घुमंतू’