- पदोन्नति में आरक्षण बहाली को लेकर अगस्त माह से दलित सांसदों व विधायक के सुरक्षित क्षेत्र में लगेगी ‘आरक्षण बचाओ चौपाल‘ और खोली जायेगी उनकी पोल
लखनऊ, 29 जुलाई 2018: आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति,उप्र की प्रान्तीय कार्यसमिति की बैठक में लोकसभा में लम्बित पदोन्नति में आरक्षण संवैधानिक संशोधन 117वां बिल पास कराने व उप्र की सरकार आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 3(7) को 15-11-1997 से बहाल कराने को लेकर आज चर्चा की गयी। जिसमें संघर्ष समिति ने यह निर्णय लिया है कि अगस्त माह से ‘आरक्षण बचाओ चौपाल’ दलित सांसद व विधायकों के क्षेत्रों में लगाकर उनकी पोल खोली जायेगी और समाज को यह बताया जायेगा कि पिछले 4 वर्षों से ज्यादा का समय व्यतीत होने को है और लोकसभा में लम्बित पदोन्नति बिल पर मा. जन प्रतिनिधियों ने कुछ नहीं किया।
संघर्ष समिति ने कहा कि आरक्षित सीट से जीतकर आने वाले सभी जन प्रतिनिधियों का यह नैतिक दायित्व है कि वह बाबा साहब द्वारा बनायी गयी संवैधानिक व्यवस्था आरक्षण को बचाने व उसे लागू कराने में अपना योगदान दें। दलित समाज को केवल वोट बैंक समझकर हमारे समाज के सांसद/विधायक भी कर रहे हैं आरक्षण विरोधियों के इशारे पर काम, जिन्हें 2019 के चुनाव में वोट की ताकत से सबक सिखाना जरूरी है।
संघर्ष समिति ने केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि पिछले कुछ दिनों से देश के मा. प्रधानमंत्री जी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय उप्र के दौरे पर हैं, लेकिन उनके द्वारा एक भी सार्वजनिक सभा में दलितोें के सबसे अहम मुद्दे लोकसभा में लम्बित पदोन्नति में आरक्षण, पिछड़े वर्गों के लिये पदोन्नति में आरक्षण व एससी/एसटी एक्ट पर कोई भी बात नहीं कही गयी।
इस मौके पर आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति,उप्र के संयोजकों अवधेश कुमार वर्मा, डा. रामशब्द जैसवारा, आरपी केन, अनिल कुमार, अजय कुमार, श्याम लाल, अन्जनी कुमार, रीना रजक, रेनू, महेन्द्र सिंह, अशोक सोनकर, पीप0 सिंह, योगेन्द्र रावत, रामेन्द्र कुमार, अरविन्द फर्सोवाल, सुनील कनौजिया ने एक सयुंक्त बयान में कहा कि उप्र की सरकार पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की बहाली की पत्रावली को केवल घुमा रही है। पूरे प्रदेश का 8 लाख आरक्षण समर्थक कार्मिक अब यह जान चुका है कि सरकार केवल दलित कार्मिकों को भरमा रही है। वहीं पड़ोसी राज्य बिहार में एक तय समय सीमा के अन्दर पदोन्नति में आरक्षण की बहाली करके अपनी मंशा साफ कर दी है। अब समय आ गया है कि सभी दलित कार्मिकों को एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।